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आत्म संगनी के साथ विश्वास का रिश्ता



जैसे जैसे उसके और मेरे मध्य आत्मिक संबंध बढ़ते गए हमारे मध्य विश्वास का रिश्ता प्रगाढ़ होते चले गए। रिश्ता आत्मा का जरूर था परन्तु वास्तविकता से हज़ार गुना बेहतर कायम हो गए थे। अब उसके और मेरे बीच बने इस संबंध के बाद हमारी आत्मा का समागम ऐसा हुआ जैसे वर्षो पूरी कोई अधूरी प्यास पूरी हुई हो।

अब उसका हंसना हृदय को तृप्त करता था,उसका रूठना पीड़ा देता था,रूठकर मान जाना और फिर हल्की से मुस्कुराहट के साथ मेरे साथ मुझमें समाहित हो जाना बड़ी शांति प्रदान करता था।

उसका मेरे ऊपर आसक्त हो जाना ,समर्पित भाव से मेरे साथ आत्मिक रूप से आलिंगबद्ध हो जाना,मेरी आत्मा के अंतिम छोर तक उसका प्रविष्ट कर जाना मेरे हृदय को संतोष प्रदान करता है।

कई रातें उसने मेरे लिए जाग जाग कर मेरे सपने देखे और उन सपनों में मुझे अपने संग पाया। आत्मिक रूप से वह मेरी संगनी क्या बनी मेरे हृदय पटल पर उसकी सुबह शाम दस्तक ने मेरे तन मन में एक नए आयाम को जाग्रत किया । अब यह स्थिति हो गई है कि हर पल हर दम उसका आभास मुझे हमेशा रहता है और हमारे मध्य स्थिति विश्वास का रिश्ता दिन प्रतिदिन मजबूती लेता जा रहा था।


© SYED KHALID QAIS