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रामेश्वरम में हैं राम शिव
रामेश्वरम! नाम लेने से भी मन राममय हो जाता है। पूरा अंतर्मन ही श्रद्धा और भक्ति से भर जाता है। जितना भगवान श्री राम की महिमा है उतना ही महादेव की कृपा है रामेश्वरम में।
लोग बस, ट्रेन के सफर और जाने कितने जद्दोजहद के बाद रामेश्वरम पहुंचते हैं। जो दक्षिण भारत से नहीं हैं उनके लिए तो अलग ही परीक्षा होती है। यहां की भाषा समझने और उन्हें अपनी बात समझने की नाकाम कोशिश अक्सर परेशानी का सबब बन जाती है। फिर भी, प्रेम के इस सबसे पुराने और सच्चे प्रतीक के दर्शन और महादेव के साथ भगवान श्री राम, लक्षमण, हनुमान जी की कर्मभूमि और विभीषण के एकमात्र मंदिर के दर्शन करने की इच्छा इन सबसे परे होती है।
सुबह सूर्योदय से पहले श्रद्धालु रामास्वामी मंदिर में महादेव का मणि दर्शनम करने के लिए सुबह 4 बजे से टिकट लेकर लाइन में लग जाते हैं। उसके बाद प्रथा के अनुसार सबसे पहले अंगितीर्थम (समुंद्र) में स्नान और उसके बाद 22 पवित्र मीठे जल के कुंडों में स्नान करने के बाद ही महादेव के उस शिवलिंग का दर्शन और पूजन किया जाता है। लगभग 3 घंटे का समय भरपूर श्रद्धा और भक्ति के सराबोर होकर भक्तगण महादेव के एक दर्शन को बिता देते हैं।
यही नहीं जिस प्रेम के भाव में भगवान श्री राम ने सागर पर पत्थरों का पुल बना कर माता सीता को लाने लंका तक चले गए थे, उस राम सेतू को देखने के लिए भी लगभग 2-3 घंटे का सफर तय करना पड़ता है।
ये भक्त जनों को होने वाली तकलीफ और उनके द्वारा उठाये जानेवाली समस्या का जिक्र बार बार इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि श्रद्धा और भाव के सामने इसका कोई स्थान भी है। ये तुच्छ सी चीज है उस भाव के सामने कुछ भी नहीं जिस आशा से भक्त गण इतनी तकलीफ उठाते हैं। एक भक्त बस इसी भाव से 2000-2500 किलोमीटर कि यात्रा कर महादेव और भगवान श्री राम की कृपा पाने आते हैं। इस सोच में की ये पावन धरती है और यहां की शक्ति और मान्यता अलग है। यहां प्रार्थना करने पर भगवान सारे कष्ट दूर कर देते हैं।
लेकिन अब आपको इसी यात्रा के थोड़ा पीछे लिए चलते हैं। जैसे कि ट्रेन के सफर के दौरान वो स्टेशन पर भीख मांगता वो आदमी, बस स्टैंड पर भीख मांगती वो बुढ़िया या फिर मंदिर के ठीक बाहर वो बुजुर्ग साधू जो आपसे बस एक वक्त का भोजन मांग रहा था। मैं ये कतई नहीं कहता तो हर भीख मांगने वाले कि मदद कर ही देनी चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि अगर किसी के लिए भाव ऐसे हैं कि वो अपना जीवन एक हफ्ते के लिए छोड़ कर, कम से कम 5-6 महीने की बचत झोंककर महादेव की कृपा पाने के लिए यहां आ रहा है, तो वो लोग जो पहले से यहीं पर हैं, उनकी प्राथमिकता अलग क्यों है? आखिर क्यों उन्हें मोक्ष से ज्यादा भूख की पड़ी है। वो क्यों एक दिन के बारे में सोच रहें कबकी उन्हें सीधा वैकुण्ठ जाने का अवसर है।
इन्हीं सवालों के बीच आज रामेश्वरम की अपनी यात्रा समाप्त कर अपने कर्मभूमि के लिए प्रस्थान कर रहा हूँ। कुछ सवालों के जवाब लेने आया था, उल्टे कुछ और सवाल मिल गए। शायद ये भी महादेव की चाल है कि ये सब छोड़ अपने कर्म पर ध्यान दूँ मैं।
जय श्री राम। हर हर महादेव।


© शैल