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मेरी आत्म संगनी का बढ़ता प्यार


नव वर्ष के आगमन के साथ मेरे जीवन में मेरी आत्म संगनी के प्यार में एक नए अध्याय का आरंभ हुआ। उसने मुझे मन मस्तिष्क से अपना स्वीकार कर लिया। मेरी आत्म संगनी कबसे मेरे आत्मा में समाई थी। उसका मेरे प्रति समर्पण मन को शांति प्रदान करता है। हम हजारों मील दूर थी, प्रत्यक्ष रूप से मिले नही थे,मगर हमारे बीच अब कोई दूरी नही थी,मन से , मास्तिक से , शरीर से,भावनाओं से,अहसास से यहां तक कि अब एक दूसरे के मिजाज़ तक से हम परिचित हो गए थे। उसका अपने परिवार,समाज के साथ मुझे धारण करना किसी देवीय उपहार से कम नही थे।


नव वर्ष के आगमन से पूर्व हमने मिलकर नूतन वर्ष के आगमन को उल्लास के साथ मनाया,आशा की के नए वर्ष में हमारे इस अनोखे बंधन को और जटिलता मिले।हमारे बीच खुशियों का एक नया अध्याय शुरू हो। मेरे आलिंगन में नव वर्ष का मिलन करते हुए मेरी आत्म संगनी ने एक रोज कहा "जानू मुमकिन होता यदि तो मैं तुममे इस तरह समा जाती के लोग हमें अलग अलग नही देख पाते।समा जाती तेरी रूह में ,सांसों में ,धड़कन में एक नए अहसास के साथ की अब हम जुदा नहीं हैं एक हैं। में तुम्हारी हर निशानी को अपने अंदर आत्मसात करना चाहती हूं,में अपने हमदम के लिए वोह पीड़ा भी उठाना चाहती हूं जो एक अर्धांगिनी अपने सुहाग के लिए उठाने को तैयार रहती है। में तुम्हारी हर उस चीज को अपने अंदर धारण करना चाहती हूं जो तुमको प्यारी हो।तुम्हारे दुख,तुम्हारी तकलीफ अब मेरी है,मैं टूटकर प्यार करना चाहती हूं,इतना प्यार जितना कि कोई किसी को अब तक कर नही पाया हो। मेरे लिए उसका यह जज्बा ही नए साल का वेश कीमती उपहार था।
© SYED KHALID QAIS