ग़ज़ल।
कई बातें हैं कहने को तुम्हें
पर दिल कहता अब कुछ न कहें
वे अपने हुए तो समझेंगे
जो न समझे तो कुछ भी नहीं
ये बात पुरानी है
कुछ उनको बतानी है
शायद वो न समझे तो
उनका कसूर नहीं
वो अपनो में न सही
पर दिल से दूर नहीं
रातें काली तो होगीं ही
बातें खाली तो होंगी ही
रस्मों की फिकर सब करते हैं
कुछ उनकी मुनासिब होंगी ही
कई बातें हैं कहने को तुम्हें
पर दिल कहता अब कुछ न कहें
तकीए के नीचे रक्खी है
वो मेरी पहली चिट्ठी है
जो पहली अंतिम होती है
वो आज भी कोरी है
शायद वो हमको पढ पातें
नज़रों में किताबें हैं अपनी
वे अपने हुए तो समझेंगे
जो न समझे तो कुछ भी नहीं।
© geetanjali
पर दिल कहता अब कुछ न कहें
वे अपने हुए तो समझेंगे
जो न समझे तो कुछ भी नहीं
ये बात पुरानी है
कुछ उनको बतानी है
शायद वो न समझे तो
उनका कसूर नहीं
वो अपनो में न सही
पर दिल से दूर नहीं
रातें काली तो होगीं ही
बातें खाली तो होंगी ही
रस्मों की फिकर सब करते हैं
कुछ उनकी मुनासिब होंगी ही
कई बातें हैं कहने को तुम्हें
पर दिल कहता अब कुछ न कहें
तकीए के नीचे रक्खी है
वो मेरी पहली चिट्ठी है
जो पहली अंतिम होती है
वो आज भी कोरी है
शायद वो हमको पढ पातें
नज़रों में किताबें हैं अपनी
वे अपने हुए तो समझेंगे
जो न समझे तो कुछ भी नहीं।
© geetanjali
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