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एक राज़ : अकेली राधा जी (भाग: २)
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सुमित अपनी नाराजगी लिए राधा जी पास पहुँच तो गया परंतु उन्हें बाहर करने की हिम्मत सुमित में आ नहीं रही थी जैसे उसका मन ये करने को राज़ी न था, संध्या ये सब देख रही थी और एक चिंतन में थी बताए या नहीं क्योंकि अनुपम गुस्से में उसे मना कर के गया था। उसने जैसे ही राधा जी की मूर्ति को स्पर्श किया अनुपम अपने कमरे का दरवाजा खोलकर वहाँ आगया। उसके आँखों में कुछ आँसू थे। सुमित अपने पिता के आँखों में आँसू पहली बार देखा था, उसने कुछ नही कहा बस अपनी माँ संध्या की तरफ देखने लगा। अनुपम ने कहा "राधा जी को छूना भी नहीं, तुम्हें क्या लगा उस लड़की ने मुझे कॉलेज में ही आख़िरी मुलाक़ात की, नहीं। ये कहानी का सिर्फ आधा हिस्सा है, और वो कोई लड़की नहीं तुम्हारी माँ है वो समझे तुम्हारी माँ!" मतलब वो माँ ही थी सुमित की होठों में मुस्कान आगयी वो संध्या की तरफ़ देखने लगा परंतु उसके मन मैं फ़िर सवाल आया तो अपने पिता से पूछा "फ़िर राधा जी अकेली क्यों?" अनुपम थोड़े देर शांत रहा तो संध्या पूछी "मैं बता दूँअगर आप कहो तो?" अनुपम ने कहा "नहीं, इसकी जरूरत नहीं मैं ठीक हूँ मैं बता देता हूँ! सुनो सुमित वो लड़की जब मेरी कॉलेज आई.." अनुपम अभी बोल ही रहा था की सुमित ने कहा "लड़की क्यों बोल रह होे आप संध्या या मेरी माँ बोलो न इससे मुझे लगता है वो मेरी माँ नहीं है।" ठीक है तो तुम्हारी माँ जब मुझसे कॉलेज मिलने आई तो वो जाने को बोली और बोली की जब मैं वापस आऊँगी तब कृष्ण और राधे भी मिलेंगे तो मैंने उससे पूछा जा कहाँ रही हो और इतने साल कहाँ थी? तब तुम्हारी माँ ने मुझे बताया "वो भारत की पहली महिला बटालियन का हिस्सा है जिसने लड़कियों के लिए चालू हुई दो साल पहले पहली बैच एन.डी.ए में प्रवेश ही नहीं किया बल्कि ऑफिसर के...