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तिरंगा झुका तो नहीं 🇮🇳

स्वरचित कहानी :तिरंगा झुका तो नहीं 🇮🇳

ये कहानी है कश्मीर के एक छोटे से कस्बे के छोटे से बच्चे अहमद की है, जिसके पिता  पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी में भारत के लिए जासूसी का काम करते थे। उसके पिता पाकिस्तान की खुफिया जानकारी भारतीय सेना को देता था और इसी के चलते एक दिन उसे पाकिस्तान के आला अधिकारियों द्वारा पकड कर उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है।
अब अहमद के परिवार में वो, उसकी माँ फातिमा और उसकी बुढ़ी दादी रहती थी। फातिमा भी अपने शौहर की तरह ही सच्ची देश भक्त थी, वो अहमद को छोटी उम्र से ही हिन्दुस्तान के वीर शहीदों की गाथा और तिरंगे की महिमा सुना सुना कर एक देश भक्त नायक बनाना चाहती थी। अहमद का परिवार जिस कस्बे में रहता था, वो एक तरह से आतंकियों की शरण स्थली था और वहां उनके उनके परिवार को खतरा भी था पर अहमद की माँ न चाहते हुए भी वहां रहने को मजबूर थी, क्योंकि यदि वो ऐसा करते तो आतंकियों की नजरों में आ जाते इसलिए वे वही रहने लगें।
उनके घर के पास ही में परिवार के करीबी रिश्तेदार बुढ़े खान चाचा भी रहते थे, अहमद के पिता की मौत के बाद से फातिमा और उसके परिवार का वही एक मात्र सहारा था, खान चाचा का एक ही बेटा था जिसे आतंकियों ने उसकी आँखों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया था, खान चाचा कपड़े सिलने का काम करता था और उससे जो आमदनी होती उसी से उसका और फातिमा के परिवार का गुजारा होता था।

अहमद भी अब 10 साल का हो गया था और वह खान चाचा की दुकान में उनके छोटे - मोटे काम में हाथ बटाने लगा था।
एक शाम वो और खान चाचा दुकान बंद कर घर जा रहे थे तो वे देखते हैं कि उनके घर के पास ही रहने वाले शाकिब और अफजल तेजी से भागते हुए उधर गली में से आगे निकल गए और उनके पीछे बंदूक लिए पुलिस के कुछ सिपाही भी आ गए, उनमें से एक सिपाही खान चाचा से पूछता है कि इधर 2 लोग भागते हुए आए हैं क्या?.... इस पर अहमद बोलने वाला ही था कि खान चाचा बोल पड़े
खान चाचा - अरे! नहीं नहीं साहेब.... इधर से हमने किसी को जाते नहीं देखा,
फिर वे सिपाही वहां से चले जाते है, उनके जाने के बाद अहमद खान चाचा से बोलता है चाचा आपने झूठ क्यों बोला वो दोनों तो हमारे सामने से ही गली में भागे थे।
इस पर चाचा उसे चुप कराते हुए बोले
चाचा - अरे बेटा! हम क्यों फ़ालतू मे इनके लफडें मे पड़ने लगे
अहमद - पर पुलिस उनके पीछे क्यों भाग रही थी
चाचा - बेटा... कर दिया होगा कुछ गलत काम, पर तुम किसी के बारे में कुछ मत बताना किसी को, इनका कोई भरोसा नहीं होता।
अहमद - पर चाचा.... अम्मी तो बताते हैं कि पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है और कानून व्यवस्था बनाने के लिए है, इसलिए हमें भी पुलिस की सहायता करनी चाहिए
चाचा - (अपने बेटे को याद करते हुए) बेटा.... हमे जीने के लिए कई बार ख़ामोश रहना पड़ता है, नहीं तो बोलने का अंजाम....... (चाचा बोलते - 2 रुक गए)
अहमद - क्या अंजाम चाचा...?
चाचा - कुछ नहीं, घर चलते हैं तुम्हारे अम्मी जान इंतजार कर रहे होंगे। वो दोनों घर आ जाते हैं।

रात को खाना खाते समय अहमद अपनी अम्मी को पूरी घटना के बारे में बताता है, तो उसकी अम्मी कहती हैं कि बेटा चाचा वक़्त और हालात जानते है, इसलिए उन्होंने चुप रहना ठीक समझा, साथ ही उन्होंने चाचा के बेटे के साथ हुए हादसे के बारें में भी अहमद को बताया कि किस तरह से उसे आतंकियों ने चाचा की आँखों के सामने उसे मार दिया था।

फातिमा अहमद को पढ़ाना चाहती थी, पर जिस कस्बे में वे रहते थे, वहां आतंकियों का दबदबा होने के कारण वहां के सरकारी स्कूल में कोई भी अध्यापक नहीं ठहरता था और उस कस्बे के मदरसों में जो शिक्षा दी जाती थी, वो शिक्षा नहीं बच्चों को आतंकी बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी, क्योंकि वहां पर आतंकियों का बोलबाला था.... शाकिब और अफजल भी उसी मदरसे में पढ़ा करते थे और आज उनके पीछे पुलिस थी.....वो सब गलत रास्ते पर निकल पडें थे, ऐसे में फातिमा को अफजल की और चिंता होने लगी थी
इसलिए फातिमा ने निर्णय लिया कि वो खुद से ही अफजल को पढ़ाया करेगी.... और वो उसके लिए कुछ किताबें भी लाती है, अब से उसे सुबह शाम जब भी वक़्त मिलता वो अफजल को पढाती थी और आजादी के किस्सों के साथ साथ गांधी, नेहरू, जिन्ना आदि के बारे में भी जानकारी देती थी कैसे भारत को आजादी मिली और कैसे भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना....... भारत - पाक बंटवारे के समय फातिमा का परिवार पाकिस्तान वाले हिस्से में चला जाता है, फातिमा का बँटवारे के बाद से ही अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया। उसने अपना परिवार, पति सब कुछ खो दिया था.... जिसका दर्द उसकी आंखों से आँसू बन कर झलक गया, फातिमा अपने आँसू छिपा अहमद की ओर देख कर मुस्करा देती है पर अहमद ने उसकी अम्मी के दर्द को आंक लिया था और वो उठ कर अम्मी के गले लग जाता है, फातिमा उसकी पीठ थपथपाते कस के बाहों में भर लेती है।

एक दिन अहमद ने देखा शाकिब और अफजल के साथ चार लोग और भी थे उन्होंने मुहं पर नकाब लगा रखा था और सभी के पास बड़े बड़े बैग थे। उसके अगले दिन ही पता चला कि उसी कस्बे के शौकत अली और उसके परिवार की की किसी ने निर्मम हत्या कर दी है, शौकत अली भी भारतीय सेना के लिए ही खुफिया एजेंट का काम करता था, जिसके बारें में आतंकियों को पता चला गया था। शौकत अली और उसके परिवार की हत्या में उन्हीं लोगों का हाथ था जो शाम को शाकिब और अफजल के साथ आए थे और वे लोग उन परिवारों को निशाना बना रहे थे, जिनका कनेक्शन भारतीय सेना से था।
शौकत अली और उसके परिवार की हत्या से वहां कर्फ्यू लगा दिया था और पुलिस हर किसी से पूछताछ कर रही थी और सबूत इकट्ठा कर रहीं थीं। पुलिस वहां खड़े लोगों से भी पूछताछ कर रहे थे कि उन्होंने यहां किसी अनजान व्यक्तियों को या ऐसा कुछ देखा है जिसकी वजह से कोई सबूत मिल जाए, पर डर के मारे उनमें से किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी, इतने में अहमद बोल पड़ता है :-
अहमद - साब!!... मैंने देखा था 4-5 लोगों को शाकिब चाचा और अफजल चाचा के साथ और उनके पास बड़े - बड़े बैग भी थे।
बस फिर क्या था सेना की टुकड़ी ने शाकिब और अफजल के घर को चारों तरफ से घेर लिया और वो चारों पकड़े जाते हैं,उनके पास से काफी सारे हथियार, जिंदा कारतूस भी मिले।
पुलिस ने शाकिब और अफजल को भी गिरफ्तार कर लिया था। सभी को गिरफ्तार करने के बाद सेना का अफ़सर आता है और अहमद की पीठ थपथपाते हुए उसे एक छोटा तिरंगा देता है और कहता है - इसे जरूरत है तुम्हारे जैसे निडर और साहस की।
अहमद उस तिरंगे को हाथ में पकड कर बहुत गर्व महसूस कर रहा था, पर अब फातिमा और खान चाचा को उसकी फिक्र होने लगी थी, क्योंकि उसने आतंकियों के बारें में बता कर खुद की जान संकट मे डाल ली थी। फातिमा और खान चाचा उसे घर से बाहर ही नहीं निकलने देते थे।
एक रोज़ फातिमा की तबियत खराब होने की वजह से अहमद खान चाचा के लिए खाना लेके जा रहा था उसने एक हाथ में टिफिन और दूसरे हाथ में सेना के अफसर द्वारा दिया हुआ तिरंगा था। वो जैसे ही खान चाचा की दुकान के पास पहुंचा तो सामने से खान चाचा उसकी ओर चिल्लाते हुए दौडते आ रहे थे, अहमद कुछ समझ पाता इससे पहले गोलियों की आवाज के साथ ही खान चाचा गिर पड़े एक गोली अहमद के कंधे से आर-पार निकल जाती है और वो भी वही गिर जाता है।
जब अहमद को होश आता है तो वह खुद हॉस्पिटल में भर्ती पाता है और उसके पास उसकी डॉक्टर, नर्स, अम्मी के अलावा के अलावा सेना का वो अफ़सर भी मौजूद था जिसने अहमद को तिरंगा दिया था। उसे देख अहमद बोलता है-
अहमद - साब!.... तिरंगा झुका तो नहीं? (अहमद के कंधे पर गोली लगने के बाद भी उसने तिरंगे को कस कर सीधा पकड़ा हुआ था)
अफ़सर -(उसकी तरफ मुस्काते हुए) नहीं बेटा!... तिरंगा अगर तुम्हारे जैसे सच्चे देश भक्त के हाथों में हो तो झुक ही नहीं सकता।
अहमद - (उसकी अम्मी से कहता है ) देखा अम्मी!.... मैंने भी अप्पा की तरह ही तिरंगे को झुकने नहीं दिया, साब ने मुझे देश भक्त कहा है।
फातिमा - हाँ बेटा! तुम भी अपने पिता की तरह ही सच्चे देश भक्त हो, मेरी तपस्या सफल हुई। (ऐसा कहते हुए अहमद का माथा चूम लेती है।)
अहमद - अम्मी, खान चाचा कहां है.... उन्हें भी गोली लगी थी?
फातिमा - वो ठीक है बेटा (फातिमा ने झूठ बोला था... दरअसल खान चाचा उस गोलीबारी में मारे गए थे, उनकी मौत की खबर सुनकर उसे कोई सदमा न हो, इसलिए झूठ बोल दिया)
फातिमा की बात सुनकर वह अफसर भी उसे सैल्यूट करता है।

उस अफसर ने फातिमा और अहमद को रहने के लिए नया घर दिया और अहमद का दाखिला भी अच्छे आर्मी स्कूल में करवा दिया था। उसकी बहादुरी के लिए उसे 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) पर उसे इनाम दिया गया। अभी भी अहमद के हाथ में वो तिरंगा था, जो उस अफसर ने दिया था... उसने तिरंगे कस के पकड रखा था। (वो तिरंगे को कभी नहीं झुकने देगा ऐसा दृढ़ संकल्प था उसकी आँखों में)
वहां सभी लोग तालियां बजा रहे थे और वो उस लहराते तिरंगे को देख रहा था।....... जय हिंद 🇮🇳


हर श्वास तुझ पर अर्पण काम में कुछ ऐसा कर जाऊँ,
दिल दिया है ऐ वतन! तुम्हें........तुम पर मैं मर जाऊँ।


चेतन घणावत स.मा.
सचिव-केसर काव्य मंच🇮🇳
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