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प्रेम निष्ठा (अंश-3)
ऑटो में बैठे, तो बस मानो वक्त किसी खाई में मुझे धकेल गया हो। हवाओं के झोंको में कही गुम सी गिरती चली गई। निशा ने भी कोई सवाल न किया मेरी उदासी वो खूब समझती थी। स्टैंड कब आया मुझे पता भी न चला मै कही खोई हुई थी। बस निशा ने कहा, निष्ठा स्टैंड आ गया। अचानक मानो होश आ गया मुझे, मै और निष्ठा ऑटो से उतर गए। बस फिर कहने को दो बातोनी सहेलिया साथ थी। मगर बाते कुछ भी न हुई पुरे रास्ते दोनों चुप चाप घर पहुँच गयी,अपने-अपने। इतनी थकान में भी नींद नहीं आई आज मन में हज़ारों ख्याल थे मगर वो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे और पूरी रात ख्यालो में बीत गयी। सुबह हो गयी और बस सब अपने-अपने काम पर चल दिये, मगर मन बुझा-बुझा सा था मेरा, आज। शाम हुई मगर वही उदासी थी मन में कि बीता दिन खुबसूरत था और आज उदास थी,
मेरी। बस फ़ोन उठाया तो देखा की इतने सारे मैसेज, फ़ोन में जब देखा तो निशा,अर्श और प्रेम ने इतनी बातें की थी। की मै सारी उदासी छोड़ मनो ख़ुशी से झूम उठी। बस अब मै मैसेज पढ़ने लगी। बातें उन्होंने की मगर ख़ुशी मुझे थी। उनके उस मैसेज में मेरा जिक्र था, तो मैने जवाब दिया ''कैसे है सब" अर्श ने कहा, बहुत बढ़िया, तुम कहा थी इतनी बिजी, अभी तक। मैंने कहा कुछ नहीं बस यु ही, तुम कहो आज कहा निकले थे दिल्ली की सैर पर दोनों। अर्श ने कहा आज कही नही बस थोड़ा रेस्ट। मगर कल का दिन बहुत अच्छा था, बस अब तो रोज यु मिलना नहीं होगा, हम चारों दोस्तों का,ये बहुत बुरी बात है। मैने कहा क्यों नहीं ,क्या पता फिर मुलाकात हो। हमारे बातो के बीच, प्रेम ने कोई प्रश्न और जवाब न किया। मगर कुछ देर की चुप्पी के बाद वो खुद को रोक न सका और फिर वही बाते शुरु हो गयी, चारो की। बातों बातों में दिन बीत गया।
To be continued...
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