...

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सुकन्या


" अंकल " मेरे पीछे से एक आवाज आई । मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कूड़े के ढेर में पुराने से कपड़े में एक दूधमुंही बच्ची लिपटी हुई थी।

वह छोटी सी बच्ची उदास होकर मुझसे कहती है 'अंकल, मुझे आप अपने साथ ले चलो '।
"मुझे पैदा हुए अभी 8 घंटे ही हुए हैं परंतु मेरे जन्म से मेरी मां , पिताजी और दादी तीनों निराश हो गए मुझे देखते ही मिलने वाले सब रिश्तेदार कहते हैं "हाय फिर लड़की!! "

अंकल मुझे क्या जन्म नहीं लेना चाहिए था ।

"अंकल पास में ही एक जानवर ने नर और मादा दोनों तरह के बच्चों को जन्म दिया है उनकी मां तो सब बच्चों को बराबर प्यार कर रही है । "

'अंकल जानवर इंसान से अच्छे होते हैं क्या ?'

बच्ची के भारी भरकम सवालों के आगे मैं निरुतर हो गया ।

तभी स्कूटर पर एक पति-पत्नी बच्चे को देख कर रुक जाते है । मुझसे बच्ची के बारे में जानने के बाद औरत उस बच्ची को उठाकर अपने सीने से लगा लेती है और हाथ ऊपर उठाकर कहती है, ' हे भगवान 10 साल की तपस्या का फल आज अपने मुझको इस कन्या के रूप में दे दिया । 'आज से मैं इसे सुकन्या कह कर पुकारउंगी । अब इस बच्ची को पता चल गया था कि असली इंसान तो जानवर से बहुत बड़ा दयालु और भावुक होता है ।

लड़की के जीवन का अंधकार उम्मीद की नाव पर बैठकर सूरज की पहली किरण के साथ ही नष्ट हो गया था ।

© Abhinav Anand