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बड़े मियां - २
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह धुएं के बादलों पर तैर रहे हों। बादलों को पार कर,रूई सी सफेद नदी के किनारे चलते चलते जल्द ही वो गगन चुंभी सीढ़ियां के पास पहुंच गए। उन्होंने हैरत से सीढ़ियों की अनंत ऊंचाई को देखा और चढ़ना शुरू किया। चढ़ते चढ़ते उन्होनें एक भव्य द्वार दिखाई दिया। आख़िरी सीढ़ी पर कदम रखते ही वो द्वार खुद ब खुद खुल गया।
अंदर का दृश्य देखते ही उनकी आंखें खुली की खुली रह गई । ऐसा लग रहा था मानो वह किसी राज महल में आ गए हो। सिंहासन में पर कोई बैठा था मगर उनके मुख पर इतना तेज था कि वो उन्हें ठीक से देख नहीं पा रहे थे। उन्होंने आसपास नजर दौड़ाई । कुछ लोग लैपटॉप पर काम करने में मग्न थे।दूसरी तरफ उस जैसे कुछ साधारण लसे दिखने वाले लोग लाइन बना कर खड़े थे। सामने एक बड़ी स्क्रीन पर दुनिया के अलग-अलग कोनों की तस्वीरें उभर रही थी।
"ओहहोह तो आप भी मेरी तरह एक जगह बैठ सब कुछ देखते रहते हो ।" मियां जी ने हंसते हुए लैपटॉप पर काम कर रहे एक अधिकारी से बोला।
अधिकारी ने आंखें तरेर कर मियां जी को देखा। मियां जी सकपका कर दूर हो गए।
सिंहासन पर बैठे हुए तेजवान मुख वाले महाराज ने अधिकारी को आगे की प्रक्रिया शुरू करने का इशारा किया।
"यह सब कौन हैं?और यहां क्या हो रहा है ?"
"तुम्हें नहीं पता.... यह यमलोक है और हम सब मरने के बाद यहां लाए गए हैं। ये सब हैं हमारे कर्मों का लेखा-जोखा बता कर हमें स्वर्ग या नरक में भेज रहे हैं!"
"क्या?" मियां जी का मुंह खुला का खुला रह गया।उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने झट से अपना हाथ अपने दिल के पास रखा .. मगर ये क्या उन्हें कोई धड़कन सुनाई नहीं दे रही थी।उन्होंने जल्दी से अपने हाथ को नाक की तरफ किया... सांस आ जा नहीं रही थी ।
"तो क्या मैं सच में मर गया हूं??? ...नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता ...ऐसे कैसे हो सकता है ?
अभी तो कितने काम अधूरे पड़े हैं .. मैं ऐसे कैसे मर सकता हूं?"
मियां जी जोर जोर रोने चिल्लाने लगे। वो बदहवास से सारे भवन में इधर उधर दौड़ने लगे।

क्रमश:

© Geeta Dhulia