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वह पागल लड़की
वक्त-वक्त की बात है। वक्त कभी किसी का इंतजार नहीं करता। लोग जाने कैसे-कैसे सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए कैसी-कैसी तरकीबें भिड़ाते रहते हैं, लेकिन होता क्या है? होता वहीं है, जो होना होता है। आज पूर्णिमा की रात है। वैसे तो हर महीने पूर्णिमा आती है, लेकिन आज से बारह साल पहले का वह पूर्णिमा का दिन मेरे लिए आज भी अविस्मरणीय है, जिस दिन मैंने उस पागल लड़की का साक्षात्कार किया था जो आज भी मेरे लिए एक अबूझ पहेली की तरह है।
लखनऊ विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान विभाग में शिक्षण कार्य करते हुए मुझे 8 वर्ष बीत चुके थे। रक्षाबंधन का दिन था। विभाग के सामने काफी देर तक टहलने के बाद उसने सकुचाते हुए विभाग के अंदर प्रवेश किया। पूछने पर पता चला कि वह अपनी बड़ी बहन श्वेता के बारे में पूछताछ करने आई है, जो भाषा विज्ञान विभाग में एम ए प्रथम वर्ष में एडमिशन लेना चाहती है । बड़ी बहन साथ में नहीं थी। पूछने पर उस लड़की ने अपना नाम दिव्या बताया। उसने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था और अब कक्षा 11 में प्रवेश लेने के लिए एक अच्छे विद्यालय की तलाश में थी। मैंने उसे एक अच्छे विद्यालय का नाम बताया और उसका पता भी दिया। बातचीत के तरीके से ऐसा लग रहा था कि वह लड़की सामान्य नहीं है और उसके अंदर एक जज्बा है कुछ कर गुजरने के लिए।
धीरे-धीरे कई दिन गुजर गए।करीब एक सप्ताह बाद मैंने उस विद्यालय में उसे देखा, जहां का पता लिखकर मैंने भेजा था। मुझे अचानक वहां देखकर वह चौंक गई। ग्यारहवीं क्लास के आर्ट्स फैकल्टी में उसे दाखिला मिला। वह लड़की, जो हल्के सांवले रंग की थी। कद 5 फीट 2 इंच, इकहरा शरीर और साधारण रूप- रंग, किंतु उसे लिखने- पढ़ने का जुनून सवार था। धीरे-धीरे उसे पता चला कि मैं लखनऊ विश्वविद्यालय के साथ-साथ इस विद्यालय में भी शिक्षण कार्य करता हूं और उसकी कक्षा का मैं क्लास टीचर भी हूं। उस लड़की के माता-पिता छत्तीसगढ़ राज्य के किसी छोटे से गांव में रहते थे और यहां लखनऊ में अपनी बच्ची को किसी रिश्तेदार के घर पढ़ने के लिए छोड़ दिए थे। उसके रिश्तेदार के घर में सदस्यों की संख्या काफी थी और वहां पढ़ाई का माहौल तो शायद नहीं ही था। उसे उस घर से खुद को एडजस्ट करने में काफी परेशानी होती थी,लेकिन वह हिम्मत हारने वालों में से नहीं थी। उसने मुझे बताया था कि उसकी पढ़ाई का लक्ष्य आईएएस बनना है। पढ़ाई के प्रति उसकी लगन को देखकर मैंने और साथ के दूसरे शिक्षकों ने काफी सहयोग किया।
पढ़ाई के साथ-साथ विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी वह बड़े मन से भाग लेती थी।
अपने विषय से संबंधित कठिन प्रश्नों को अपने शिक्षकों से बार-बार पूछती और कभी-कभी मुझसे भी ऐसे -ऐसे प्रश्न पूछती कि मैं आश्चर्यचकित हो जाता। पढ़ाई के प्रति उसकी सच्ची लगन और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा को देखकर मेरा झुकाव उसके प्रति बढ़ गया और मैंने उसे अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास शुरू कर दिया। नतीजा बड़ा ही अच्छा निकला। घरेलू परीक्षाओं में अपनी कक्षा में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त कर उसने सबको गौरवान्वित कर दिया।
किंतु कहते हैं ना कि साधना किसी भी प्रकार की हो, बाधायें तो आती ही हैं। तरह-तरह की समस्याएं सामने आईं, जिनसे लड़ते हुए वह बोर्ड परीक्षा में शामिल हुई। विपरीत परिस्थितियों में भी उसने अपनी इंटरमीडिएट परीक्षा को सम्मान सहित प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। इसके बाद अगले 5 वर्षों में उसने लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक एवं परास्नातक शिक्षा प्राप्त किया। फिर उसने पहले ही प्रयास में आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर लिया। आईएएस की मुख्य परीक्षा को भी उत्तीर्ण करके वह इंटरव्यू के लिए सिलेक्ट हुई, किंतु उसके बाद घर वालों के दबाव की वजह से उसने विवाह कर लिया। वह अपने आप में बहुत जिद्दी लड़की थी। विवाह के बाद उसने आईएएस का इंटरव्यू नहीं दिया और अपने पति के साथ जो किसी प्राइवेट बैंक में एक शाखा प्रबंधक के रूप में उड़ीसा में कार्यरत हैं, वहां चली गई। उसके बाद कई मौके आए, कई जगह उसकी नौकरी लगी; लेकिन वह पागल लड़की कहीं भी नौकरी करने को तैयार नहीं हुई और अब अपना विवाहित जीवन अपने पति के साथ बिता रही है और कहती है कि वह बहुत खुश है।



© देवेन्द्र कुमार सिंह