...

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शायरी...
बेवजह मुस्कुरानें कीं ​अदा हैं हमारी
​लोंग इसे हमारा पागलपन कहतें हैं
​नासमजों कों यह कैसें बतायें...
​सिप में मोतीं कीं तरह ​इस हंसी नें
​अंदर कें कई तुफानों कों अपनीं
​मुस्कुराहटों सें रोक कर रखा हैं...

​ शोभा मानवटकर....

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