एक डर, बिजुका
हरिहरपूर पहुँच कर मैं अपने दोस्त के खेतों को देखने चला गया। दोस्त के बहुत जिद्द के बाद उसके गाँव गया था। गाँव अब गाँव कहाँ रहे आधुनिक चीजों ने गाँव को भी शहर जैसा कर दिया। परंतु शुद्ध वातावरण ही है जो गाँव को गाँव बनाये रखे हुए है।
दूर दूर तक बस खेत और खेतों में भरपूर अनाज उगे हुए। मेरे दोस्त ने कहा चलो तुम्हे अपना खेत दिखा दूँ! मैं भी उसके साथ चला गया। वहाँ उसके खेत में मजदूर किसान लगे हुए थे जो खेत की देख रेख कर रहे थे। मेरे दोस्त को घर वालों ने बुलाया तो वो मुझे खेत देखता छोड़ घर की ओर चला गया। मैं उसके किसानों से बात करने लग गया। खेत में अनाज अच्छी मात्रा में उगे थे। किसान खुश थे। पर मेरी नज़र वहाँ पर मौजूद एक पेड़ पर बैठे बहुत सी चिड़ियाँ पर पड़ी वो बस अनाज की तरफ देख रहे थे परंतु कोई भी पंछी खेत में आने का हिम्मत नहीं कर रहे थे। ये सब देख मेरे अंदर एक जिज्ञासा हुई की ऐसा क्या खाश बात है की ये पंछी खेत में रखे अनाज को देख कर भी खा नही रहे। और बस दूर से देख रहे।
मैंने जब किसानों से ये बात पूछी तो वहाँ मौजूद एक बूढ़े रमेश चाचा ने मुझे देख कहा ये सब भी तुम्हारे जैसे विदेशी बाबू है, बाबू साहब! मैंने कहा मतलब? रमेश चाचा ने...
दूर दूर तक बस खेत और खेतों में भरपूर अनाज उगे हुए। मेरे दोस्त ने कहा चलो तुम्हे अपना खेत दिखा दूँ! मैं भी उसके साथ चला गया। वहाँ उसके खेत में मजदूर किसान लगे हुए थे जो खेत की देख रेख कर रहे थे। मेरे दोस्त को घर वालों ने बुलाया तो वो मुझे खेत देखता छोड़ घर की ओर चला गया। मैं उसके किसानों से बात करने लग गया। खेत में अनाज अच्छी मात्रा में उगे थे। किसान खुश थे। पर मेरी नज़र वहाँ पर मौजूद एक पेड़ पर बैठे बहुत सी चिड़ियाँ पर पड़ी वो बस अनाज की तरफ देख रहे थे परंतु कोई भी पंछी खेत में आने का हिम्मत नहीं कर रहे थे। ये सब देख मेरे अंदर एक जिज्ञासा हुई की ऐसा क्या खाश बात है की ये पंछी खेत में रखे अनाज को देख कर भी खा नही रहे। और बस दूर से देख रहे।
मैंने जब किसानों से ये बात पूछी तो वहाँ मौजूद एक बूढ़े रमेश चाचा ने मुझे देख कहा ये सब भी तुम्हारे जैसे विदेशी बाबू है, बाबू साहब! मैंने कहा मतलब? रमेश चाचा ने...