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रॉन्गनंबर
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बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो ऐसे ही फोन की घंटी बजी थी, उसने रिसीवर उठाया था, और किसी की मधुर एवं मीठी ध्वनि सुनाई दी थी। अचानक उसका मस्तिष्क भारी होने लगा। वह अतीत के पन्नों में खो गया। फोन पे उसने कहा था- जी मेरा नाम गीतिका है। मुझे किराए से एक घर चाहिए था। आपके यहां क्या कोई कमरा किराए से मिल सकता है? मुझे एक कमरा चाहिए। मैंने कहा- जी मिल सकता है। आप आइए और पसंद कर लीजिए। अगर आपको घर पसंद आ जाए, तो देख लीजिए, और नहीं? तो कोई बात नहीं। अगले दिन गीतिका अपनी सहेली मुनमुन के साथ घर देखने पहुंच गई। घर साधारण ही था। उसने जीत से किराया पूछा? जीत ने कहा- हजार रुपए महीना। गीतिका मान गई। वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी। यह उसका दूसरा साल था। अगले दिन ही वह, उस घर में शिफ्ट हो गई। अक्सर जीत को सुबह ऑफिस जाते समय गीतिका से मुलाकात हो जाती। जीत के ऑफिस के पास ही गीतिका का कॉलेज था। कभी-कभी जीत गीतिका को बस स्टॉप पर बस का इंतजार करते देखता, तो अपनी बाइक उसके पास रोकते हुए कहता- चलो मैं छोड़ देता हूं। न जाने कितनी बार इसी तरह जीत ने गीतिका को कॉलेज छोड़ा था। यह सिलसिला कब प्यार में तब्दील हुआ उसे खुद पता न चला। अब तो अक्सर यह रोज़ की बात हो गई। अब तो दोनों की मुलाकातों का सिलसिला तीव्र गति से आगे बढ़ता चला गया। इसी तरह 1 साल गुजर गया। एक दिन इस बात की खबर घरवालों को लगी। उन्होंने आव देख न ताव गीतिका से घर खाली करवा लिया। गीतिका ने अपने प्यार की बलि चढ़ा दी, और कॉलेज छोड़ अपने घर वापस लौट गई। आज इसी फोन की घंटी ने उसके पुराने जख्मों को तरोताजा कर दिया। उसकी आंखें भर आई। तभी जीत को मां की आवाज सुनाई दी और वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा।