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"तस्वीर" (The painting)
कहानी दो कलाकारों की है। दोनों ही कलाकार अपने-अपने क्षेत्र में उम्दा तस्वीरें बनाते थे। दोनों ही अपनी अपनी चित्रों की जगह जगह प्रदर्शनी लगाते थे। जहाँ रामनाथ जी जीवंत चित्रण करने में विख्यात माने जाते थे वही दया शंकर भी बेहद उम्दा तस्वीरें बनाने में प्रवीण थे।
दोनों पड़ोसी थे और मित्र भी मगर दया शंकर जी मन ही मन रामनाथ जी से प्रतिस्पर्धा का भाव रखते थे वही दूसरी ओर रामनाथ बेहद सरल व्यक्ति थे वो जो भी करते दिल से करते और प्रसन्न रहते।
उधर दया शंकर को खुद पर जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था जो अब धीरे धीरे गुरूर में तब्दील हो चुका था।
एक दिन रामनाथ जी से बातों ही बातों में उन्होने उन्हें अपने घर पर भोजन में निमंत्रण दिया जिसे रामनाथ जी ने सहस्त्र ही स्वीकार कर लिया।
योजना बद्ध अनुसार दया शंकर ने अपने कमरे में अपनी सारी उम्दा तस्वीरें लगाया और रामनाथ जी का इंतज़ार करने लगे।
नियत समय पर रामनाथ जी आ गए। दया शंकर ने उनका हृदयँ से अभिनंदन किया और नौकर गंगाधर को भोजन परोसने को कहाँ।
भोजन आदि से निपटने के बाद बातों बातों में वो रामनाथ जी को अपने कमरे में ले गए जहाँ उन्होंने अपनी तमाम उत्कृष्ट चित्रो का संग्रह सजा कर रखा था।
सभी चित्र देखकर रामनाथ ने बहुत तारीफ की और बहुत प्रसन्न हुए।
बातों बातों में दया शंकर ने उनके चित्रों को देखने की अपनी इच्छा जाहिर की जिसे रामनाथ ने स्वीकार कर लिया और एक हफ्ते बाद उन्हें रात के भोजन पर आमन्त्रित किया।
एक हफ्ते बाद दया शंकर रामनाथ के घर पर पहुँच गए। रामनाथ ने भी दया शंकर की आवभगत में कोई कमी न रखी और स्वादिष्ट भोजन उन्हें परोसा,मगर दया शंकर का ध्यान भोजन में नहीं था,वो बस किसी तरह रामनाथ के चित्रों को देख लेना चाहते थे ईर्ष्या के कारण वो अपने साथ एक मित्र को भी लाएं थे ताकि मित्र भी बता सकें कि कौन बेहतरीन कलाकार है।
फिर दया शंकर ने रामनाथ से चित्रों को देखने की इच्छा जाहिर की तो रामनाथ जी उन दोनों को एक कमरे में ले गए। जहाँ ढेरों चित्र नहीं बल्कि एक ही चित्र कैनवास में रखा हुआ था। दया शंकर को बेहद आश्चर्य हुआ लेकिन वो चुप रहें और कैनवास की ओर बढ़ गए।
वो कैनवास के करीब जाकर खामोश खड़े रहे तो रामनाथ ने पूछा कैसी लगी आपको मेरी तस्वीर दया जी इस पर दया शंकर हंसते हुए बोले अरे हम तो तभी राय दे सकते है ना जब आप इस चित्र से ये पर्दा हटाएंगे।
इस पर रामनाथ जी मुस्कुराये और बोले वो पर्दा भी चित्र ही है जिसमें झीनी पर्दे के पीछे बैठीं एक युवती को उन्होंने दर्शाया है।
सुनकर दया शंकर निरूत्तर हो गयें और अवाक कभी चित्र को कभी अपने मित्र तो कभी रामनाथ जी को ताकतें,आज उन्हें अपने हर प्रश्न का उत्तर मिल गया था।
उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर लिया और रामनाथ जी से अपनी ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा के लिए क्षमा मांगी तो रामनाथ जी ने हंसकर उन्हें अपने गले से लगा लिया।
(समाप्त)
समय-10:4 - सोमवार



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