...

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गुलाब सी खिल उठती
सुबह से रात कैसे हो जाती पता ना चलता
बातों का सिलसिला उनसे दिन रात चलता रहता

बीच बीच में बात ना हो तो उनकी यादों का
कारवां मेरे हरपल संग चलता रहता

कितना खास और कितना दिल मे वो समाया है मेरे
आँखो में पलके सजे है जैसे होंठो पे मुस्कन बिखरे है जैसे

उसकी हर बात जादू करती मेरे सीने में हलचल करती
मेरी जान तूने मुझे पागल है कर दिया तेरे बिना मुझे सुकून भी ना मिलता

उसकी हँसी सुन मेरे चेहरे गुलाब से खिल जाते है
उसके कांटे भी गर मुझे चुभ जाए तो वो दर्द भी मुझे मीठा सा लगे

देर रात तक बातें होती लफ्ज़ो से कुछ ना कहते
आँखो आँखो से ही बस बातें करते आढ़े टेडहे शकले बनाते

फिर एकटक एक दूसरे को ऐसे निहारते जैसे चाँद चकोर को निहारते
सर्मा के नजरे दोनों चुराते फिर एक लम्बी सांस लेते

पल यही थम जाए रात यही रुक जाए वो बस मेरे सामने ऐसे ही रहे
ताउम्र बस वो मुझे और मैं उसे ऐसे ही तकते रहूँ