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शकुंतला
शकुन्तला अपने पति से जितना प्यार करती थी।
उतना ही अपने अराध्य पर विश्वास भी करती थी।
लोगों ने कितना समझाया उसे कि भूल जाओ अपने पति
को अब वो कभी वापस नहीं आने वाला है।
मग़र शकुंतला कहती आप लोग ऐसा मत कहों,
मेरा मन कहता है।वो जरुर आएंगे.....!
सारे संगे संबंधी दोस्त रिश्तेदार समझा समझा कर थक गये और अब तो उसे लोग पागल भी कहने लगे थे।
धीरे-धीरे सब उससे मुंह मोड़ने लगे थे ।उसे बहरुपया और न जाने क्या-क्या नाम इनाम देने लगे थे। मगर शकुंतला बिना किसी की परवाह किए अपने पत्नी धर्म का निर्वाह करती हुई ।अपने पति के लौटने का इंतजार कर रही थी।
रोज सूरज की पहली किरण के साथ उसकी इंतजार शुरू होता और सूरज ढलने के बाद चांद तारों को निहारत हुए देर रात तक चलता रहता चलता रहता और बस चलता ही रहता। ज़रा सी आंख लग जाने पर,हल्की सी आहट से भी भी वह चौंक कर देखने लगती।कहती अरे आप आ गए कितनी देर लगा दी ।मैं कब से आपका इंतजार कर रही थीं।।
आपको पता है ना आपको आने में अगर जरा सी भी देर होती है तो मेरा जी घबराने लगता है। फिर भी आप...
कहते-कहते वो रो पड़ती.....!
आज बट सावित्री पूजा है हर साल की तरह इस साल भी शकुंतला ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए सावित्री माता का यह निर्जला व्रत रखा था। आज फिर उसे परिवार से लेकर पड़ोसियों तक से ताने ही ताने सुनने थे। मगर फिर भी उसने सुबह उठते ही पूजा की थाल सजाया और नहा-धोकर नये वस्त्र धारण कर सोलह श्रृंगार किया और एक नजर स्वयं को निहारते हुए कहां काश..!आज तुम मुझे देख पाते ....?? कहां हो..? अब तो आ जाओ...
देखो सब मुझे पागल कहने लगे हैं। अब तो मेरा भी विश्वास टूटने लगा है।इस तरह तुम्हारे बिना जीने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊं......!! शकुंतला आज मन में दृढ़ निश्चय करके घर से निकली थी। आज अगर पूजा समाप्त होने तक मेरे पति वापस नहीं आते हैं ।तो मैं वही उसी वट वृक्ष के नीचे सर पटक पटक कर अपने प्राण त्याग दूंगी..!!
आज एक भक्त अपने भगवान अपने अराध्य की परीक्षा
लेगी। कहते हैं अगर कोई सच्चा भक्त मुश्किल में हो और वो सच्चे मन से अपने ईश्वर की आराधना करें । और वो अपनी सारी परेशानी सारी समस्याएं सब उन्हीं के श्री चरणों में समर्पित कर दें तो।भगवान उसकी रक्षा करने
अवश्य करते हैं। हर साल से ज्यादा कठिन व्रत और स्वयं को माता सावित्री के श्री चरणों में समर्पित कर भक्ति में लीन हो शकुंतला बैठ गई बट वृक्ष के नीचे और और पढ़ने लगी सावित्री और सत्यवान की अद्भुत चमत्कारी कथा।
मोहल्ले की स्त्रियां आती रही और पूजा करके अपने-अपने घरों को जाती रही। कई स्त्रियों ने कई बार शकुंतला को आवाजें भी दी।शकुंतला बहन शकुंतला बहन सांझ होने को है ।कब तक यहां बैठी रहोगी ।घर नहीं जाना है क्या.?? व्रत तोड़ने का समय भी हो गया है।
मगर शकुंतला ने उन में से किसी की भी बातों पे ना तो ध्यान दिया और ना ही कोई जवाब दिया। बस कथा पढ़े जा रही थी पढ़े जा रही थी। शकुंतला की कठिन भक्ति देखकर माता सावित्री प्रकट हुई और उन्होंने शकुंतला से कहा।
उठो पुत्री तुम्हारी आराधना सफल हुई।
मैं तुम्हारी पतिव्रता धर्म को देखकर अति प्रसन्न हूं।
मांगो तुम्हें क्या वरदान चाहिए.....??
अपने अश्रुपूरित नैनों से शकुंतला ने मां सावित्री के श्री चरणों में अपना सर रख दिया और कहा मां मेरा सुहाग लौटा दो ।बदले में आप चाहो तो मेरे प्राण ले लो...।
मैं अपने पति के बगैर जी कर क्या करूंगी..??
मुझे मेरे सुहाग की भीख दे दो मां...
माता सावित्री ने शकुंतला से कहा जाओ पुत्री ,
तुम्हारा पति घर पर तुम्हारी राह देख रहा है।
सच..!
आप धन्य हो मां"आपने मेरी लाज रख ली..!
आपका यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगी और सदैव मैं आपकी पूजा करती रहूंगी..!! सावित्री माता की जय कहते हुए शकुंतला ने अपना पूजा संपन्न किया और भागते हुए अपने घर आई। घर में अपने पति को पाकड़ शकुंतला फूली नहीं समाई...अरे आप आ गये कहते हुए शकुंतला अपने पति के सीने से लग गई....!!
किरण