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मैं और चांद पार्ट -1

"नया अर्द्धरात्रि मित्र"


कुछ समय पहले की बात है, जब ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्टफोन ज्यादा प्रचलित नहीं थे और मोबाइल भी घर में एक ही था, वो भी पापा के पास ही रहता था, तब दिन में तो दोस्तों के साथ समय बिता लेता था, परंतु रात में अक्सर अकेला ही रहता था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, क‌ई परेशानियां और सवाल मेरे मन को घेरने लगे, रात में अक्सर छत पर बैठकर सोचता रहता कि, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?, मेरे दोस्त मुझसे दूर क्यों होते जा रहे हैं?, सब इतने खुश रहते हैं और मेरी कोई इच्छा पूरी ही नहीं हो पाती। इस तरह के ख्यालों की उधेड़बुन में जाने कब रात गुजर जाती और फिर अगली रात दिन भर की परेशानियां लेकर बैठ जाता। ऐसे ही क‌ई रातें गुजरती ग‌ई।

फिर एक पूनम की रात मैं यूं ही बैठा हुआ था, कि कानों में एक हल्की-सी आवाज सुनाई दी - "क्या हुआ?", मैं उठकर चारों ओर देखने लगा कि कौन है?, पर कोई दिखाई नहीं दिया। तभी फिर सनसनाती हवा के बीच सुनाई दिया, "परेशान क्यों हो रहे हो?, मैं तो तुम्हारे सामने ही हूं।"
मैं फिर थोड़ा सा घबराया और इधर-उधर देखने लगा, तभी अचानक से चांद की एक हल्की सी चांदनी की किरण मेरे ऊपर पड़ी, मानो कह रही थी कि यह आवाज मेरी ही है, घबराओ मत। मैंने नज़र उठाकर चांद को देखा तो लगा, चांद मुझे देखकर मुस्करा रहा है।

मैंने चांद की तरफ देखकर कहा- "ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हो? क्या हुआ?"
तभी मेरे कानों में आवाज गूंजी- "मुझे क्या हुआ? मैं तो हमेशा की तरह अपना काम कर रहा हूं। हां, कुछ दिनों से तुम्हें देख रहा हूं कि हर रात कुछ उलझे हुए से यहां पर बैठे रहते हो। तुम बताओ क्या हुआ?"
मैं पहले तो थोड़ा सा अचंभित-सा हुआ पर फिर थोड़ी सी हिम्मत करके बोला- "तुम्हें क्या बताऊं? तुम मेरी समस्याएं क्या समझोगे, तुम तो आसमान में रहते हो।"
चांद मुस्कुराया और बोला - " हां, मैं आसमान में रहता हूं, परंतु हर रात लोगों की समस्याएं सुनता हूं, तो अपनी समस्याएं कहने को मुझसे अच्छा दोस्त नहीं मिलेगा।
मैंने कहा - "तुम्हें क्यों अपनी समस्या बताऊं, मैं तो अपने दोस्तों को बताऊंगा।" चांद जोर से हंसा और कहने लगा- "अगर किसी को तुम अपनी समस्याएं सुना पाते, तो यूं रात के अंधेरे में यहां नहीं बैठे होते।"
मैंने चांद से पूछा:- "पर तुम क्यों मेरी समस्याएं सुनना चाहते हो?"
चांद कहने लगा:- "क्योंकि मैं अकेलेपन का दर्द समझता हूं..."
"अकेलापन और तुम? तुम तो इतने तारों के बीच में हो और उन सब से ज्यादा चमकदार भी हो।" मैंने चांद को टोकते हुए पूछा।
चांद ने कहा:- "कल बताऊंगा।"
मैंने पूछा:- "क्यों?"
मैं आगे कुछ कहने ही वाला था कि चांद फिर से बोल पड़ा- "देखो न बातों ही बातों में कितना समय बीत गया और तुम्हारे सोने का समय हो गया है। अभी तुम जाओ और आराम करो, हम कल बात करेंगे, तब तुम मुझे अपनी समस्याएं बताना और मैं तुम्हें अपनी दास्तां सुनाऊंगा और अगर हो सका, तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर दूंगा।"

मैंने घड़ी में समय देखा, लगभग 3 बजने वाले थे। और मुझे फिर सुबह उठना भी था, तो चांद से विदा लेकर और सुबह जल्दी उठने की सोचकर, मैं सोने के लिए चला गया। परंतु मेरी नींद जा चुकी थी, मैं बिस्तर पर लेटकर सोचने लगा कि जो अभी हुआ, वह क्या था?, यह कोई सपना था या हकीकत? जो भी हो पर मुझे अब अच्छा लग रहा था, जैसे इस छोटे से परिचय ने ही मेरी आधी चिंताओं को समाप्त कर दिया था, मेरे मन में एक सुकून था न‌या दोस्त मिलने का। इस तरह से पहली बार मेरे और चांद के बीच वह अर्द्धरात्रि वाली मित्रता की शुरुआत हुई।
पर उस रात मेरे मन में एक नया सवाल पनप उठा था कि चांद न ऐसा क्यों कहा कि 'वो अकेलेपन को समझता है?' इसी सवाल को मन में लिए, मैं अगली रात फिर से छत पर जाने का निर्णयकर सोने को चला गया।
—अनिकेत साहू
कल के अंक (पार्ट-2) में पढ़िए:- तारों के बीच में चांद अकेला, क्यों?

"Note:- फोटो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा निर्मित है।"



© Aniket Sahu