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अपना घर
ज़िंदगी में हर दिन और रात नये लगते हैं, रोज़ कुछ नया अघटित घट जाता है! चाहे मनचाहा हो या न हो!

यूँ तो परिधि की शादी को 7 साल बीत गए थे मग़र वैवाहिक जीवन में सुख के पल कभी नहीं आये, वो हमेशा उम्मीद करती, भगवान से प्रार्थना करती कि सब कुछ ठीक हो जाए!

समाज के नज़रिए से देखें तो सब ठीक था, ससुर का दिया फ्लैट, पति शेखर, सरकारी डॉक्टर, अच्छी तनख़्वाह और प्यारा सा बेटा! माँ शादी से ठीक 2 महीने पहले स्वर्ग सिधार गयीं थी और पिताजी कुछ महीने पहले ही, दुःख सुख बाँटने वाला अब कोई नहीं था!

पति बहुत शराब पीते थे, चिकित्सक होते हुए भी बुरी तरह से लत लगी हुई थी!

नशा करने के बाद, घरेलू हिंसा, उत्पात अब हर दिन और हर रात का सिलसिला था!

सहती जा रही थी और चलती जा रही थी!

हर समय दिमाग़ में बस यही बात रहती कि हे भगवान या तो मेरे पति को ठीक कर दो या मुझे पत्थर का बना दो, अब और सहन नहीं होता!

उस रात भी हमेशा की तरह ही नशे में धुत थे, जाने क्या धुन सवार थी, उनके मन में जाने क्या चल रहा था, लेकिन बाकी दिनों से ज़्यादा था जो भी चल रहा था!

बेटे की तरफ़ चाकू लेकर दौड़े, परिधि समझ नहीं सकी कि शेखर क्या और क्यों ऐसा कर रहे हैं, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था! जैसे ही वो चाकू लेकर आये, परिधि ने बेटे को बाथरूम में बंद किया, मग़र उसकी कुंडी ऊँची होने की वजह से बेटा लगा नहीं पा रहा था, और शेखर पर खून सवार!

फ़िर उसने रसोई में बंद किया, यहाँ भी वही, कुंडी बहुत ऊँची थी, बच्चे का हाथ पहुंचना संभव नहीं था, क्या करे, दिमाग़ बहुत तेज़ चला रही थी, फ़िर उसने एक कमरे में बच्चे को ले जा कर ख़ुद को बंद किया!

बाहर से शेखर दरवाज़ा तोड़ देने को अमादा थे, कुंडी की स्थिति टूटने जैसी हो गयी थी, कुछ ही देर में टूट भी जाती फ़िर उसने बड़ी हिम्मत कर, दरवाज़ा खोल दिया, बच्चे को अपने पीछे ही रखा!

एक हाथ से बेटे को संभाल रही थी और दूसरे हाथ से पति से बचाव कर रही थी!

उसने शेखर से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए, क्यों रोज़ रोज़ परेशान करते हो??

शेखर ने कहा कि मेरे घर से निकल जाओ!!!

परिधि को लगा कि भगवान ने उसकी सुन ली है, शेखर उसे ख़ुद इस नरक से जाने के लिए कह रहे हैं!

बिना एक पल की देर किये उसने और बच्चे ने जो कपड़े पहने थे, जैसी हालत थी उसी हालत में घर से निकल गए!

करीब रात 11 बजे का समय था, बाहर सोसाइटी के बहुत सारे लोग थे, सब देख सुन रहे थे मग़र कुछ कर न सके!
भुलाये नहीं भूलती वो रात, जब सुनसान सड़क पर प्यारे टॉमी के सिवा उसके साथ कोई नहीं था, था तो जानवर लेकिन इंसानों से ज़्यादा वफादार!
उसके नमक का हक़ अदा कर रहा था, जब कोई नहीं पूछता था तो वो वहीं उसके दरवाज़े ही रहता!
परिधि ने उसे वापस जाने को कहा, पुचकारा सहलाया, वो बात मानकर साथ नहीं आया मग़र वहीं खड़ा रहा, वापस नहीं गया, उन्हें जाते हुए देखता रहा!

समाज में ऐसी कितनी ही औरतें हैं जो ससुराल से निकाल दी जाती हैं!
कहाँ जाएँ, उनका घर कहाँ हैं, मायका पराया, ससुराल भी अपना नहीं, दर दर भटकने को मजबूर हैं!!!!!


© सुधा सिंह 💐💐