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प्रेम निष्ठा (भाग -4)
तीन दिन बीत गये, मगर हम चारों की कोई बात न हुई। शायद सब इतने बिजी थे कि वक्त का पता भी न चला। खेर छोड़ो ये बाते, किसी को क्या कहूँ, मैने कौन-सा किसी को मैसेज करके हाल पूछा। आज दोपहर जब फ़ोन देखा तो उसपर मैसेज आया हुआ था। मैसेज प्रेम का था, उसने कहा की कल हमारी ट्रेन है, तो हम वापस जा रहे है। क्या तुम दोनों मिल सकती हो, लास्ट डे। निशा ने कहा की, मै जरुर आती मगर मैं अभी 'दिल्ली से बाहर' हू। मगर तुम तीनो जरूर मिलना मुझे अच्छा लगेगा। प्रेम ने कहा, कोई बात नही निशा, अर्श भी नहीं जा रहा था, क्योकि उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है। हम तीनो मिलने वाले थे मगर अब तुम भी नहीं मिल सकती, तो कोई बात नहीं रहने दो निष्ठां भी शायद माना करदे। निशा ने कहा कि क्यों नहीं तुम दोनों ही मिल लो, अगर मिल पाओ तो। प्रेम ने कहा, तो निष्ठां तुम जब मैसेज पढ़ना तो अपना जवाब देना, की क्या हम दोनों मिल सकते है कल, और कल फिर सन्डे है। मैसेज पढ़ने के बाद मैंने कोई जवाब नहीं दिया, दो तीन घंटे सोचती रही मिळू या नही। फिर देखा कि निशा का कॉल था,मैने फ़ोन उठाया तो निशा ने मेरे कुछ बोलने से पहले ही निशा ने बोलना शुरू कर दिया। उसने कहा देख तू मिलना चाहती है, मगर मिलने से डरती है, और डर का कोई जवाब है बस, बाद में अफ़सोस करना, तो मिल ही ले उससे। मेने कुछ नहीं कहा मगर लगा बात तो सच है, न मिलकर अफ़सोस करने से सही मिल ही ले। मैंने निशा से बस इतना कहा कि ठीक है देखती हूँ। निशा से बात करने के बाद कुछ देर सोच में डूबी रही, फिर जवाब दिया, ठीक है मै कल मिल रही हु, प्रेम तुमसे मगर कहा मिलेंगे हम। उसने कहा जहा तुम कहो, मेने कहा जहां पहली मुलाकात हुई थी। वही लास्ट मीटिंग रखते है। अच्छा लगा की हम कल मिलेंगे, मगर मुझे अजीब भी लग रहा था पता नही कैसे होगी मीटिंग,मगर जो भी हो, अब हां तो कर दिया था। बस फिर वही खुद से सवाल और जवाब की दुनिया में खो गयी, मै।
To be continued...
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