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आत्म संगनी ओर व्रत त्यौहार और मेरे प्रति समर्पण
आत्म संगनी ओर व्रत त्यौहार और मेरे प्रति समर्पण

मेरा और आत्म संगनी का संबंध अभी अटूट हो चुका था।उसके सीने में धड़कता दिल उसका जरूर था पर धड़कता मेरे ही लिए था। उसका मुझे देख देखकर बलाएं लेना चूमना अब रोज का शगल बन गया था। उसका निर्जला व्रत भूख प्यास को त्याग कर महज मेरे खातिर गर्मी को नजर अंदाज करके रखना मुझे तकलीफ देता था क्योंकि मैं नही चाहता था कि वह मेरे लिए इतना तप त्याग करे।मेरे लिए भूखी प्यासी रहे।मगर वह राधा की भांति अपने मन मंदिर में मुझे समाए दिन रात श्रद्धा से तप कर रही थी।मेरी राधा अपने मोहन के प्यार में सुध बुध खो बैठी थी। उसका त्याग और मेरे लिए समर्पण अनोखा और आनंददायक था।

आत्म संगनी और मेरा संबंध दुनिया की नज़र में अंजान था,लेकिन वास्तविकता में हम एक दूसरे के पूरक बन चुके थे। उसका रोजाना मुझसे बाते करना,मेरी एक झलक मिलने पर अटूट प्यार करना, बलाएं लेना एक अलग ही अनुभूति प्रदान करता था।
गत दिनों मेरे जन्मदिन पर उसका मेरे प्रति उत्साह देखने लायक था।उसके द्वारा मेरे जन्मदिन को अभूतपूर्व ,अविस्मरणीय और आनंदमय बनाना एक अलग भी अहसास प्रदान कर रहा था। उसका मेरे फोटो को देख देखकर झूमना उसको चूमना और सीने से फोटो फ्रेम को लगाए लगाए सोना अब रोज की आदत में शामिल था।मेरी एक झलक नही मिलने पर उसका दीवाना होकर तड़पना,आंसू बहाना मुझे बड़ा दर्द देता था।मेरे समझाने के बावजूद उसका मुझ पर आसक्त होना निरंतर बढ़ता जा रहा था।
© SYED KHALID QAIS