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डायनासोर, हास्य-व्यंग्य- लघुकथा
हमने दुकान वाले से उत्सुकता से पूछा- " भैया एक जिंदा डायनोसोर देना ? "
वो बड़ी हैरानी से देकर बोला- अरे.., बुड़बक..का..बे पगला गये हो , या मुवी वुवी में जिंदा डायनोसोर देखकर, बहकी-बहकी बातें बताने लगे हो, कही हमरे दो रूपए का धंधा चोपट करने का.., इरादा तो नहीं हें...!

नाही.., भैया ऐसा कतई नहीं है, हमें तो सचमुच वाला वो आग उगलने वाला डायनोसोर चाहिए ।"

वो यह बात सुनकर आंखे से आंख मिलाकर जोर से बोला- " काहे.. बच्चों जैसी जिंदा लेकर बैठो हो ? अपने घर की एलसीडी तोड़कर तुरन्त निकाल दो ! ,

भैया... हमें तो एलसीडी भी तोड़ दि, पर साला वो जानकर फुदकर बाहर निकला ही नहीं, अंदर से तो गुब्बारे जैसा धुंवा धुंवा ही निकला, ओर हमरी ऐसी छिछोरी हरकत देखकर, उल्टा मम्मी के धोबी पछाड़ फटके खाने पड़े, पर आप भैया कुछ भी करों हमें तो आपसे ही वो खूंखार डायनोसोर चाहिए । जो बड़े बड़े पोस्टर में बाहर दीवारों पर चिपकाया हैं ।

वो गुस्से से बोला- " अबे..का , डायनोसोर लाने हम आसमां फोड़े या पाताल खोदें ।

भैया..आप तो खिलौनों के दुकान में बड़े बड़े अजीबो-गरीब प्राणी रखते हो, तनिक आज वो मुवी वाला डायनोसोर दिलवा दिजिओ, ताकि हम भी ठाठ-बाट से उपर बैठकर घर जाएंगे ।"

इतने में इक भाई साब बोले- " अरे.. छोरे जुरासिक पार्क वाले स्टीवेन स्पीलबर्ग से पूछनो पडेगो वो बडीयों जिंदों डायनासोर रखतो हें..।"

अब तो रहने दो भाया.. हम तो अवतार वाले जैम्स कैमरुन से ओनलाइन मगंवा लूंगों..? वो तो आसमां में उडने वालों डायनोसोर रखतो हें, ऐसे मन्ने सूनो हें ।"

छोर..वो तो न हिलेगो-डुलेगो पक्को तन्नें.. मुर्दा अमेजोन की नदी में बहाकर भेजेगो.. !

तो भाया.. कठे जिंदों मिलेगों ?"

वो तन्नें.. अमेरिका जाणो पडेगो ।"

मैंने हंसकर कहा- " परदेश कोणी जाणो, विजो टिकिट घणों मंहगो हो गयो, ओर उपर से मन्नें इंग्लिश की फूटी कौड़ी न पल्लें पड़े..!

छोरा..चितों मती करियो एजेंट मिल जाऐगो, वो तन्नें अमेरिका ठिकठाक ले जाऐगो ।

ना..ना.., भाया वो मन्नें पक्कों लूट लेगो, फोरेन में नंगों भीख मंगायेगो ।

जितनों पेसों वो मारें से लेगों इतनों पैसों म्हें.. ऊंट फिलम का डायरेक्टर बन जाऊंगो, मारवाड़ भूमि को धांसू सूटिंग से चमका दूं..?

अब छोरा ऐसे निठल्ले डायलोग मारना ओर विदेश जाणे सपणे रहने दें..!"

बात तो ठिक है भाया.. पर,ये राइटर नाम को किंडो म्हारे अंदर घूस गयो, अब तो डायनोसोर पर फिलम उतारूंगो ।

छोरा.. थारी हवाई हवाई बातों सूनकर म्हारो माथो घुम गयो अब तन्नें ऊपरवालो ही बचाऐगो ।

अब भाया क्या करें..? माटी का मुर्दों खिलोनों कदि मन्ने भायो नाहि..!

छोरा.. ऐक काम करियों बकरी को ताजो ताजो दूध पीकर सो जाणो थारे वास्ते सपणे म्हें.. बढ़े बढ़े डायनोसोर का भूत मिलेगो, वो तन्नें पीठ पर बिठाकर फ्री में फोरेन ले जाऐगो ।
ऐसा..हे..तो ठिक हें भाया..!!

अब तो बकरी को देशी दूधियों पीकर डायनोसोर को लंबो सपणो देखनो पडेगो ।


© -© Shekhar Kharadi
तिथि-५/२/२०२२, मार्च