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आत्म संगनी,समागम ओर मन की शांति


जैसे जैसे वह मेरे जीवन में समाती जा रही थी एक अलग ही अनुभूति होती जा रही थी। उससे वार्ता करना,उसकी चिंता करना,उससे बात नही होने पर एक अजीब सा खालीपन महसूस होना अब जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया था।

आत्म संगनी संग हर रात आत्म समागम मेरी आवश्यकता बन गया था,प्रति दिन विचारो का आदान प्रदान,व्याकुल मन की जिज्ञासाओं को शांत करने का साधन बन गया था।वह मुझसे और मैं उससे सैकड़ों मील दूर था परंतु उसका अहसास हमेशा मेरे साथ चलता था।हमेशा उसका अहसास मेरे मन मस्तिष्क में कायम रहा। जिसका परिणाम यह हुआ कि उससे सैकड़ों मील की दूरी के बावजूद आत्म समागम ओर उससे मिली आत्मा की शांति की अनुभूति अविस्मरणीय है।

अब हर रोज उससे तकरार फिर प्यार फिर तकरार और फिर प्यार होना हमारी आदत में शामिल हो गया था। उसका समर्पण भाव कभी भी यह अहसास नही दिलाता था कि वह आत्म संगनी है वरन जीवन संगनी नही है। हमेशा उसका मेरे प्रति समर्पण भाव,स्नेह, मेरी चिंता और ढेर सारा प्यार मन की व्याकुलता को शांत करने का साधन बन गया था।

नि:संदेह वह मुझसे कोसों दूर थी लेकिन उसका अहसास हमेशा मेरे साथ रहता था। भौतिक रूप से वह मुझसे दूर थी परंतु हर रात मेरे साथ उसका आलिंगनबद्ध होना चरम सुख की अनुभूति का अहसास दिलाता था।मुझमें उसका समाहित होना टूटकर चाहना ओर फिर भावी भविष्य के प्रति उसका मेरे लिए चिंतित होना अपने आप में एक अजीब अहसास था। हमेशा ऐसा अहसास होता था कि वह मेरे सीने पर है ओर उसके विशाल काले घने केश मुझ घने तिमिर में शीतलता का आभास कराते हैं।उसकी मंद मंद मुस्कान जीने की चाह को जन्म देती है। उसके कोमल अधर ,चंचल नयन ,सुमन सी मुस्कान मन का चैन छीन लेती है। मन की व्याकुलता को उसको शांत करना भली भांति आ गया था ओर में उसके सानिध्य में रमता चला गया।
© SYED KHALID QAIS