...

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आते जाते
ज़िंदगी की राहों पर लोग आये, दिल के ज़ज़्बातों का मज़ाक उड़ाया
मग़र ऐसा कोई ना आया, जिसने दिल के ज़ख्मों पर मरहम लगाया
यूँ तो ना ज़ख़्म ठीक हुए, ना कभी भरे, बस नासूर बन रिसते रहे
लोग आते रहे, लोग जाते रहे, आते जाते ज़ख़्मों को कुरेदते रहे

क्या मिल गया, दिल का खेल खेल कर, मेरे दिल से भी उतर गए
गए सो गए, दोबारा विश्वास करने का हौसला और हिम्मत भी ले गए
जीवन की कठिन राहों पर अकेले चलना बहुत मुश्क़िल होता है
ग़र हमसफ़र सच्चा और अच्छा हो तो, सफ़र आसान लगता है

कुचल कर अरमानों को, खेल कर दिल से मुस्कुरा कर चले जाते हैं
हर बार टूट जाता है मासूम दिल, दोबारा हिम्मत कर खड़े होते हैं
फ़िर दोबारा ज़िंदगी नये इंसान के साथ नया घाव लिए मुस्कुराने लगती है
सोचती हूँ अक्सर, ये दिलवाली चोट हर बार, हमें ही क्यों लगती है

ज़िंदगी भी मुझसे आँख मिचौली के खेल खेलना खूब जानती है
सब चालें जानती है ये, मग़र कहती या बताती कभी कुछ नहीं है
जिनसे दिल मिलते हैं, उन्हीं से जुदा करके, नित नये भँवर रचती है
इनमें उलझा कर हमें, इनसे ही जूझने की सलाह बखूबी देती है

ए प्यारी ज़िंदगी, यूँ आते जाते तू भी हमसे अब मज़े ना लिया कर
कोई नहीं बचा अब, सब प्रिय चले जाते गए हमें छोड़ छोड़ कर
आने वाले आते रहेंगे और जाने वाले जाते रहेंगे ज़िंदगी के मोड़ पर
मग़र मुझे चलना है दिमाग़ के बताए फ़ैसले और दिल के रास्ते पर

© सुधा सिंह 💐💐