हुआ बुरा हाल
एक दिवस जीभ को मेरी, बैठे बिठाये जाने क्या सूझी
लपक उठी नामुराद, गोलगप्पों के चटखारों के लिए
जीभ जो ठहरी, भला कब चुप बैठ मानने वाली थी
निकलवा ही दिया, भरी दोपहरी गोलगप्पों के लिए
पूरी दुपहरी सर पे निकली, मिला न गोलगप्पे का ठेला
नहीं मानी विरोधी हुई, मेरी जीभ गोलगप्पों के लिए
खूब जुगत लगाई, बेचारे पेट को भी शामिल इसमें किया
चालाक जीभ, गोलगप्पों के लिए, पेट को लालच दिया
बड़ी मुश्क़िल, मिला एक ठेले वाला, देख जीभ चमक उठी
लगी फिरने होंठों पर, पानी आया गोलगप्पों के लिए
खूब दबा कर खाये मैंने, पेट और जीभ ने भी मज़े लिए
निकले जो सुबह से खाने, लौट के संध्या घर को आये
चट्टो जीभ की बातों में आकर, पेट ने जो दबा कर खाया था
घर आकर लालची पेट की शामत आई, गोलगप्पे खाने गया था
कभी गुड़-गुड़, कभी पुड़-पुड़ जो पेट में होना शुरू हुआ
थोड़ी ऐंठन थोड़ी गर्मी, कुछ दर्द सा भी पेट को महसूस हुआ
अब पेट की हालत ख़राब, जीभ रायता फ़ैला चुपचाप सोती रही
पेट का बुरा हाल हुआ, उसकी हालत और ख़राब होती रही
खूब दवा दारू की मग़र कुछ आराम नहीं मिला, कुछ नहीं सूझा
इधर से उधर घर में खूब चक्कर लगाए, जीभ को भी बुला भेजा
मग़र कमबख़्त जीभ ने आँख भी न खोली, देखा तक नहीं
सबक मिला पेट को, बोला कट्टी कट्टी जीभ को, कोई दोस्ती नहीं
इधर दीर्घशंका की अनुभूति, बादलों की गर्जना सी महसूस हुई
आव देखा ना ताव, सिर पर पैर रख, पेट ने सरपट दौड़ लगाई
निवृत होकर पेट ने चैन की साँस ली, लगा हाथ दोनों कानों को, बोला
भैया ग़लती हुई हमसे, जो इस चट्टो जीभ की बातों पर कान धर डाला
© सुधा सिंह 💐💐