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स्मृतियाँ... प्रेम की
स्मृतियाँ जब मानस पटल पर उभर आती है तो ह्रदय अत्यंत भावुक हो जाता है, मन प्रसन्न्ता के साथ ही दुःख का अनुभव भी करता है।

स्मृतियाँ एहसास के उस दफ़्न फूल को फ़िर से खिला देती है और हम उसी खुशबु मेें विलीन हो जाते है।

यही हाल था, आजकल प्रीत का, जब से उसका साथ विवेक से छुटा है, तब से वो सिर्फ़ विरह के क्षण में ही जीवन व्यतित कर रही है...

उसे सोचकर ही दिन शुरू और उसकी सोच पर रात ख़तम हो जाती है....
रात को जब चाँद को चाँदनी संग देखती है तो... सहसा ही अतीत की स्मृति में चली जाती है.. ओर उन लम्हों के बारे मेें सोचने लगती है जब वो और विवेक साथ थे...
सोचकर वो कुछ शब्द गुनगुनाने लगती है...

पिया जब गया, रंग और नूर ले गया
हिज्र की रातें, दर्द की सौगातें दे गया

आँखों मेें प्यास, यूँ हर ख़्वाब ले गया
मन संग, चेहरे की "मुस्कान" ले गया

अब सताती याद पिया की रात दिन
कुम्हला गया फूल तड़पता रात दिन

खुशियों की छांव कहा अब रही यहां
अब सिर्फ़ 'ज़ख्म' की आह रात दिन

आँखों नेे सिसकना अब छोड़ दिया
दिल ❤️ नेे धड़कना अब छोड़ दिया


सोचते सोचते दिन भर की थकी प्रीत क्षणिक नींद के
आगोश में चली जाती है...

© कृष्णा'प्रेम'