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तेरी-मेरी यारियाँ ! ( भाग-2 )
गीतिका :- पार्थ, निवान कोई है ! बचाओ मुझे ।

उसकी आवाज सुनते ही वह दोनो रुक जाते है और जब वह पीछे मुड़कर देखते है तो गीतिका तालाब मे डूब रही होती है । उसको ऐसे डूबता देख वह घबरा जाते है और चिल्लाते है । गीतिका,,,,,,,,

वो दोनो भाग कर गाँव के लोगों के पास जाते हैं और उनसे गीतिका को बचाने के लिए मदद मांगते है ।

वह सब भाग कर उसे बचाने पहुंच जाते है और उसको तालाब से बाहर निकाल कर बचा लेते है ।

निवान और पार्थ भाग कर उसके पास जाते है और उससे पूछते है ।

पार्थ :- गीतिका तू ठीक है ? तुझे कही लगी तो नही ।

गीतिका कुछ भी नही बोलती चुपचाप वहां बैठी रहती है फिर निवान उससे पूछता है ।

निवान :- गीतिका बता ना तू ठीक तो है ? तू कुछ बोल क्यों नही रही ।

गीतिका बिना कुछ बोले वहां से उठकर वापस घर की और जाने लगती हैं । वह दोनो भी उसके पीछे-पीछे जाने लगते है । निवान उससे बोलता है ।

निवान :- गीतिका क्या हुआ बता ना तू कुछ बोल क्यों नही रही ।

गीतिका वही रुक जाती है और पीछे मुड़कर निवान से बोलती है ।

गीतिका :- क्यों बताओ मे, मुझे तुमसे कोई बात नही करनी । तुम्हारी वजह से मेरे आज कितनी चोट लगी है । ऊपर से मेरे कपड़े भी गंदे हो गए और ना ही मै घर समय से पहुंच पाई ।

पार्थ :- गीतिका हमे माफ कर दे । हमको तुझे ऐसे झूठ बोलकर पागल नही बनाना चाहिए था । आगे से हम ऐसा कुछ नही करेंगे ।

गीतिका :- ज्यादा अच्छे मत बनो मुझे पता है तुम झूठ बोल रहे हो ।

निवान :- हम अबकी बार झूठ नही बोल रहे । बस तू हमको माफ़ कर दे ।

गीतिका उनकी बातों पर विश्वास नही करती और वहां से चली जाती हैं ।

पार्थ गीतिका को पीछे से आवाज देता है और बोलता है ।

पार्थ :- गीतिका रुक हम झूठ नही बोल रहे । पक्का हम आगे से ऐसा कुछ नही करेंगे ।

गीतिका :- पक्का तुम झूठ तो नही बोल रहे ?

वह दोनो बिना देर किए बोलते है हाँ पक्का अगर हम दुबारा तुझे परेशान करे तो तू हमारे घर पर शिकायत कर देना । गीतिका उनको ठीक है बोल कर वहां से चली जाती है ।

निवान और पार्थ उसको फिर पीछे से आवाज देते है । गीतिका

गीतिका :- अब क्या है तुम मुझे फिर से पागल बनाने की तो नही सोच रहे ।

निवान :- अपना हाथ आगे करते हुए बोलता है । क्या तू हमसे दोस्ती करेगी ।

निवान की बात से खुश होकर पार्थ भी आगे आकर बोलता है।

पार्थ :- हाँ! गीतिका तू भी हमारी दोस्त बन जा प्लीज बहुत मजा आएगा हम साथ मे खेलेंगे, साथ मे पढ़ेंगे ।

पढ़ाई का नाम सुनते ही गीतिका के चेहरे पर खुशी आ जाती है और वो पार्थ से बोलती है ।

गीतिका :- पार्थ तू सच बोल रहा है । हम पढ़ेंगे भी वो मासूमियत से उनसे पूछती है ।

निवान :- हाँ! गीतिका हम साथ मे पढ़ेंगे भी और खेलेंगे भी बस तू पहले हमसे दोस्ती कर ले ।

गीतिका का इस पूरे गाँव मे कोई भी दोस्त नही था वो पार्थ और निवान को जानती तो थी पर वह तीनो दोस्त नही थे । वह उन दोनो की बात सुनकर काफी खुश हो जाती है और उन दोनो से बोलती है ।

गीतिका :- अपना हाथ आगे बढ़ाती है और बोलती । क्या तुम दोनो मुझसे दोस्ती करोगे ।

वो दोनो जल्दी से अपना हाथ आगे बढ़ाते है और बोलते है हाँ आज से तू भी हमारी दोस्त है । फिर वो तीनो एक-दूसरे को गले लगाते है और यही से शुरूआत होती है उनकी दोस्ती की।

पर क्या गीतिका, निवान और पार्थ ज्यादा समय तक दोस्त रह पाएंगे जानने के लिए पढ़ते रहिये "तेरी-मेरी यारियाँ"

To Be Continue Part - 3