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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त।।
इस गाथा में कौन सही है और गलत है यह कहना ज़रा मुश्किल है क्योंकि जो आत्मा अपने लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहे वो इस गाथा की मिट्टी द्वारा
प्रभावित हैं केवल वही स्वार्थ पोशित है , बाकी हर तरफ श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण है, मगर फिर भी यह गाथा अनन्त इसलिए है क्योंकि मनु का स्वार्थ मुक्त ना होकर के यूं ही भ्रमण करता है।। सबके अन्दर मैं हूं, मगर मुझे प्राप्त करना असंभव है । क्योंकि मोक्ष प्राप्त एक मुक्त आत्मा को होता है, भ्रमण कर रही ,
कर्म भोग की सजा प्राप्त कर रही आत्मा को नहीं ,
और यह कभी कर्म मुक्त नहीं होने देगा, क्योंकि
कर्म ही समय है और समय ही मैं हूं । कैसे यक्ति और स्त्री मरियादाहीन, विचारहीन, संगत पराभावह, संगत हीन, एक अपशगुन एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त का।। कृष्ण प्रेम शैली उल्लेख क्या है एक दिवानी की।। क्या प्रेम पहचान चहता है या समर्पण , क्या प्रेम को नाम की आवश्यकता है, यह गाथा किससे क्रमबद्ध है, कैसे यक्ति बंधे होते हैं,
कैसे यक्ति पराजय प्राप्त करते हैं, कैसे यक्ति अल्प आयु कहें गए हैं, कैसे यक्ति मोक्ष प्राप्त करते हैं।।
प्रेम कैसे करते हैं, कैसे यक्ति वासना करते हैं,
कैसे यक्ति यौन करते हैं, कैसे यक्ति संभोग करते हैं।। नष्टा उत्मम् नष्टा तुच्छम् कादामि अल्प धन सकटम् अल्प ज्ञानम् अज्ञात कादामि ।। नष्टा तुच्छम् नष्टा उत्मम् कदामि दीर्घ धन उचयतेत्म श्रोतम्, दीर्घ ज्ञानम् महापुरुष भवताह,।।
अल्पज्ञानी सर्वश्रेष्ठतम् दीर्घ कुल विनषका रूपयनति।।




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