...

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सोच
मिहिका एक कंपनी मे असिस्टैंट की जॉब करती थी
मिहिका कल का काम आज मे ही कर देती

स्टाफ क्या पसंद करता या नहीं ये सोचती
घर जब आती सब कम बोलते
मिहिका को फिर लगता क्या कोई मुझे पसंद करता या नहीं

मिहिका बचपन मे ही बड़ी की तरह समझदार हो गयी थी
पर मिहिका सोचती ज्यादा थी

माँ ने कई बार पूछा क्या हुआ बेटी तू बहुत चुप चुप रहती है
मिहिका ने पूरी बात बता दी की ऐसा लगता कोई मुझे पसंद नहीं करते

बेटी एक बात कहु कभी कभी सोच हम पर हावी हो जाती है
सही गलत कुछ समझ नहीं पड़ता
हमे खुद की अंदर की आवाज को सुनना है जो की हम अक्सर सुनना बंद कर देते हैं

अब मिहिका को माँ की बात समझ आने लगी
ये काम मुश्किल था पर माँ ने बार बार मदद की

अब मिहिका ये नहीं सोचती कौन मेरे लिए क्या सोंचते बल्कि सोचती सब मेरे कामों को देखते मेरे सांवलेपन को नहीं

अब मिहिका अपने काम पर ही फोकस करती
रंग रूप के मे सोचकर दुःखी नहीं होती
जो मिला उसे स्वीकार करती
और जो मिहिका का साथ देते घर मे ऑफिस मे
उनका सोचती ना की उनका जो बस उसकी कमी देखते

यद्यपि मिहिका अपनी कमी दूर करने को तैयार रहती पर इसका मतलब ये सामने वाला उसकी बस कमी ही ढूंढे

अब मिहिका ज्यादा सोचती नहीं थी और जो योग्यता को समझे उन लोगों का सानिध्य करने लगी ।

समाप्त
22/4/2024
12:48 प्रातः


@poetess6245
© ©मैं और मेरे अहसास