...

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मेरी छोटी छोटी ख्वाहिशें
मेरी छोटी - छोटी ख्वाहिशें,
दब सी गई है
तुम्हारी बड़ी - बड़ी बातों के बोझ तले,
कट रही है अब जिन्दगी जैसे - तैसे
जिसको जीने की चाह थे हम मन में पाले
मेरे सपनों के दरवाजों पर लग गए
झूठे रिवाजों के ताले
मेरी छोटी - छोटी ख्वाहिशें
दब सी गई है
रीतियों के इन बोझ तले
खुली आंखो से देखा करते थे
हम अपने सपनों का उजियारा
पर अब दिखता चारों ओर
बस टूटे सपनों का अंधियारा
जिसने जैसा चाहा
हम रिश्तों के हर उस रंग में ढले
छोर अपने खुशियों को गलियां
जाने गम की किन राहों पर हम चले
मेरी छोटी - छोटी ख्वाहिशें
मिट ही गई आखिर
तुम्हारी छोटी सोच तले
अब लगता है मानो
बुझ गई आस की सारी बत्तियां
जीवन में बची है बस कारी - कारी रतियां
इन अंधियारों में है हम डूब चले
मेरी छोटी - छोटी ख्वाहिशें
दब सी गई है
तुम्हारी बड़ी - बड़ी बातों के बोझ तले
अंजली