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ख़्वाबों का गाँव
#ख्वाबोंकासफर

कभी बैठता हूँ जब यूँही, तारों की छाँव में
ये मन निकल पड़ता है, ख़्वाबों के गाँव में।

एक उजले-उजले चाँद, की रौशनी तले
उस पार जा रहा हूँ ज्यों, मांझी की नाव में।

संगीत में सरिता के, मांझी का घुलता स्वर
बहने से लगें तन-मन, जिसके बहाव में।

धवल प्रकाश में इस, महकता कोई उपवन
चहक उठे अन्तर्मन, उसके प्रभाव में।

तृणशीष पर दमकतीं, शबनम की लाखों बूँदें
बिखरे पड़े हों जैसे, मोती से पाँव में।

कुछ इक्का-दुक्का पँछी, भटके मुसाफिरों से
खोया सा मैं भी "भूषण", स्वर्णिम सी ठाँव में।।