...

17 views

प्रियम भारतम
// #प्रियम_भारतम //

हे पावन धरा हे प्रियम भारतम वसुन्धरा,
अतिरेक सुन्दर रमणीय प्रिय -देव- धरा;
मणिक- हिमालय सुंदर मुकुट माथ धरा,
नित पग धोए तेरे हिंद- महासागर धारा।

प्राण- प्रिय जन्मभूमि पूर्वज की धरोहर,
इत चहुं दिशा बहते निर्मल नील सरोवर,
मनमोहे निर्मल बहे गंगातरंगनी मनोहर;
गंगा -यमुना- सरस्वती त्रिवेणी है, उत्तर।

उत्तर -पर्वत दक्षिण- सागर पूर्व मेघ द्वार,
हर वर्ष छह ऋतु करें धरा सुन्दर श्रृंगार;
धरती कोख धन - धान उगे अपरम्पार,
शत्- शत् नमन धरा पा अनमोल दुलार।

हे जननी जन्मभूमि धन्य पा स्नेह प्यार,
अनंत जन्म में चुका ना सकते उपकार;
धरा तोरे चर्ण शीष न्यौछावर बारम्बार,
प्रियम भारतम प्रेम हमार अनंत- अपार।

जब चित्त छाता तमस गहन अन्धकार,
तब मानव मन मर जाते विवेक- विचार;
मानुष चितवन पे छा जाता है अंहकार,
अल्पकाल मानवता मृत्यु करत दुराचार।

जब जीवन का तृष्णा स्वार्थ हो मूलमंत्र,
तब ह्रदय गंगा के सर्प रचते नव षड्यंत्र;
जीवन के मूल पंचतत्व का होता है अंत,
रचते जननी जन्मभूमि चीरहरण के तंत्र।


© Nik 🍁