...

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तुम्हें भूल जाऊँ
मैं सोचता हूँ की तुम्हें भूल जाऊँ।
तुम सोचते हो की तुम्हें याद आऊँ।

वैसे तो फर्क है हममें और तुममें,
तुम्हीं बता दो कैसे नजदीक आऊँ।

तुम्हारे इश्क में तासीर अब कहाँ रहा,
इस हालत ए इश्क में कैसे गुनगुनाऊँ।

जमी दोष हो गई फिरकिया तुम्हरी,
हालात ए जुनून कैसे तुम्हें समझाऊँ।

चलो हम तुम्हारी बात मान लेते हैं,
पर कैसे अपने हद से गुजर जाऊँ।

ए उधार का जमा कब तलक चलेगा,
राकेश यह मिट्टी चलो अब दफनाऊँ।
© राकेश कुमार सिंह