...

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सच सुन सको तो ?
हूँ सनातनी स्वाभाव से खोजी हूँ
नचिकेता जैसे प्रश्न पूछने की दोषी हूँ
यम होगा जो उत्तर मुझ तक पहुंचाएगा
गम होगा उसे जो सहमत ना हो पाएगा

माता-पिता सा निःस्वार्थ प्रेम भला कहाँ मिला है
बच्चे का भी जीवन पालक नाम रोशन स्वप्न में ही बिता है
आजकल की संतान आज्ञाकारी नहीं ऐसा बहुत सुना है
इस आजकल ने ही हिला दिया सच्चे प्रश्न से मिला दिया

क्या सच माता-पिता निःस्वार्थ प्रेमी है ?
गर ऐसा है तो कितने है जो संतान जन्म पूर्व ?

संतान की गुणवत्ता हेतु आध्यात्मिक तप करते है
मात्र कामवासना नहीं अनुवांशिकता हेतु व्रत करते है
जो बुढ़ापे की लाठी नहीं स्वतंत्र मानव जन्मते है
है सनातनी तो सनातन की सही नीव बच्चे में रखते है

भूल उस पीढ़ी की है जो आधार सही खड़ा नहीं कर पायी
है वक्त अभी भी सत्य सनातन के पालन में ही है भलाई
कविता मुक्त है सभी की राय और अभिव्यक्ति हेतु
शायद सत्य सभी जान पाए जितने है राहु केतु


© Gayatri Dwivedi