...

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भोंदू...
हां...!
ठिकठाक से
भोंदू से
दिखते है
तेरे पागल इश्क़ में
खुद को रूलाकर ,
आंसू जो बहाते
तेरे शहर में
लुकाछिपी खेलकर ,
क्या खूब कहते हैं ?
हमारे प्यार के क़िस्से
दिलों-ओ-जान से
जरा फ़िक्र...
किसको है यहां
वक़्त को तवज्जो दें !
दो घड़ी रुककर ,
तसल्ली से सुनें
रू-ब-रू फितूर पढ़ें
गुफ्तगू करने के लिए ,
रोज़मर्रा घायल जो हुए
गैरों के खंजर से ,
मतलबी रवैए से
इत्तेफ़ाक से सही
जिस्म से रूह तलक
लहू-लहू रोएं....
हमदर्दी किसको है ?
पलटकर लौट आए
दर्द की नदी पीकर
खुदगर्जी मिटाकर ,
रिश्तों की थोड़ी
कर लें अहमियत ।

© -© शेखर खराड़ी
तिथि-६/७/२०२२, जुलाई