...

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स्त्री.....
क्यूं एक स्त्री सबकुछ सहें..?

अगणित पीड़ाएं, दैहिक यातनाएं

सहस्त्र प्रताड़ना, तिरस्कृत भावनाएं

सख़्त दिवारों में, मृदु झोपड़ी में

मृत इच्छाओं में, रिक्त हृदय में

क्रंदन श्मशानों में, सुषुप्त श्वासों में

विह्वल, झंकृत जिजिविषा में

स्वयं का ठोस अस्तित्व तलाशें

क्यूं एक स्त्री सबकुछ सहें..?

रीतियों में, परंपराओं में, प्रथाओं में, बंदिशों में

विवशता में, मर्यादा में, पवित्रता में, गृहस्थ में

सीता भी बनें, द्रोपदी भी में,

अहिल्या भी बनें, सावित्री भी बनें

तपस्या में तपकर, अग्नि में जल कर ,

कूंदन आभा ऊर्जावान व्यर्थ दिखें

पुरुष प्रधान मानसिक सोच

क्षतिग्रस्त मुल्य आकलन करें

मिथ्या अक्षोभ्य शब्द व तीक्ष्ण प्रहार

गहन हृदय भाव छिन्न-भिन्न करें

चरित्रहीन, कुलहीन प्रश्नार्थ लगाएं ?

पुनः सकारात्मक से पोषित करें

अपनों के लिए नित्य युद्ध लड़कर

कष्टों का विशाल सागर पीकर ,

सदैव त्याग-समर्पण से ऋणी बनाएं

सभ्य समाज की आड़ में संघर्ष करें

क्यूं एक स्त्री सबकुछ सहें..?


© -© Shekhar Kharadi
तिथि-१६/४/२०२२, मार्च