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"वो नुक्कड़ का घर"
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
§§
:वो नुक्कड़ का घर:
उखड़ी दीवारों से झाँकती, वो सुरमई-सी ईंटें,
खड़ा है एक टूटा मकाँ, गली के उस नुक्कड़ पर,
खट्टी-मीठी यादें समेटे, ख़ुद में कई सदियों की,
था इक ज़माने में, वो किसी मास्टर का घर,
नीम उस आँगन का, जो आज भी है ज़िंदा,
है नादाँ जो देता छाँव, उस घर की टूटी छत पर,
नसीहत ही कुछ ऐसी मिली, मास्टर से नीम को,
रहा मुफ़लिसी में ख़ुद, सँवारा औरों का मुकद्दर,
बैठ आंगन में नीम तले, देता बच्चों को यह सीख,
पढ़लो-लिखलो आज, फिर न मिले शिक्षा की भीख,
पढ़-लिखकर उससे बच्चे, बने हैं आज लाटसाब,
याद तक नहीं रहा किसी को, वो बूढ़ा मास्टरसाब,
रहा हमेशा ही अकेला, थी दुनिया उसकी छोटी-सी,
पेड़ नीम का, इक था कुत्ता, और यह छोटा-सा घर,
.•°•°•.
Click link below to read more!
#treasure_of_literature
© into.the.imagination
§§
:वो नुक्कड़ का घर:
उखड़ी दीवारों से झाँकती, वो सुरमई-सी ईंटें,
खड़ा है एक टूटा मकाँ, गली के उस नुक्कड़ पर,
खट्टी-मीठी यादें समेटे, ख़ुद में कई सदियों की,
था इक ज़माने में, वो किसी मास्टर का घर,
नीम उस आँगन का, जो आज भी है ज़िंदा,
है नादाँ जो देता छाँव, उस घर की टूटी छत पर,
नसीहत ही कुछ ऐसी मिली, मास्टर से नीम को,
रहा मुफ़लिसी में ख़ुद, सँवारा औरों का मुकद्दर,
बैठ आंगन में नीम तले, देता बच्चों को यह सीख,
पढ़लो-लिखलो आज, फिर न मिले शिक्षा की भीख,
पढ़-लिखकर उससे बच्चे, बने हैं आज लाटसाब,
याद तक नहीं रहा किसी को, वो बूढ़ा मास्टरसाब,
रहा हमेशा ही अकेला, थी दुनिया उसकी छोटी-सी,
पेड़ नीम का, इक था कुत्ता, और यह छोटा-सा घर,
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