...

1 views

🤔कया सोचती थी वो?
खिड़की पे बैठी अकेले सोच,
देख बहार तकती कुछ सोच,
कहते लोग चुप रहती रोज,
न जाने कया चलता दिल में उसके रोज,
खिड़की पे बैठी अकेले सोच.

आती-जाती ना बोले कुछ,
पुछो सवाल, देती जवाब एक शब्द कुछ,
ना देखाती कोई खुशी अपनी,
ना देखाती कोई गम अपना,
खिड़की पे बैठी अकेले सोच.

हसती कभी कभार मुसकुराहठ मानो
मासूम बच्चों जेसी,
देख हम खुश होते उसे देख,
आवाज उसकी मिठी जुबान,
जेसे लगता उर्दू की खुबसूरत जुबान,
खिड़की पे बैठी अकेले सोच.

कया चलता उसके मन में,
जने ना कोई हम में से,
कया है उसके मन में चलता,
ना जाने हम में से कोई,
खिड़की पे बैठी अकेले सोच.

© black Rose