...

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जान कहकर जिंदगी बताने वाले
जों रूकता ना था इक पल के लिए
मानों वो थम सा गया है
वादा था साथ चलने का
वो तन्हा सफ़र यूं ही छोड़ गया
सुना था मगर यकीन ना था
आदतन मजबूर वो किसी एक का ना था
बिखरी पड़ी यादें बटोरें उसकी आंखें भर आती है
जान कहकर जिंदगी बताने वाले
सांसों को भी बोझ कर ग‌ए
यादें हर शाम खुद को जुदा करतीं हैं
ख़्याल उसे ना रहा
और कोई उसकी नज़र में आज़ ग़ैर हों गया




© पलक शर्मा


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