...

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"अक्स"
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
§§

"रू-ब-रू होता हूँ मैं, जब-जब इस आईने से,
अक्स ख़ुदका ही मुझे, आईने में नज़र आता है,
देखता और बोलता है, वह अक्स मुस्कुराता है,
अजनबी-सा है मगर, मुझ-सा नज़र आता है,

बेहद गहराई का, एहसास है इस आईने में,
दो दुनियाओं के बीच जैसे, द्वार नज़र आता है,

पूछता हूँ हाल जब, उससे उसकी दुनिया का,
मुस्कुराता है मेरा अक्स, बात टाल जाता है,

छिपी मुस्कुराहट के पीछे, तकलीफ़-सी कोई,
शायद इस दुनिया से भी, उसका कोई नाता है,

गुज़र जाती हैं रातें कई, जब तन्हाइयों में अकेले,
आईने के बाहर वह, बेख़ौफ़ निकल आता है,
जब होता है दिल उदास, अक्सर भीगी रातों में,
अक्स मेरा फिर चुपके से, पास बैठ जाता है,"

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