...

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हाँ वो एक परी थी
हां वो एक परी थी जो सपनो में आकर मिलती थी
हां वो थी एक गुलाब जो मेरे गुलशन में खिलती थी

पूछा करती थी कि कल्पनाओं में कहाँ तक जाते हो
देख सितारे वस्त्रों के क्या तुम कुछ लिख पाते हो

मैं सपने सारे बुनता था, कुछ लिख देता कुछ गाता था
वो भी जन्नत की राह में मेरा हाथ पकड़ के चलती थी

मेरे खास दिनों को और खास उसकी मिठाई बनाती थी
मेरे हिस्से का मीठा भी खुद बड़े चाव से खाती थी

मैं रूठ भी जाता था तो वो,
मुझे बड़े जतन से मनाती थी
मैं कितना खास हूँ उसके लिए,
हरदम मुझको बतलाती थी

मेरी किस्मत फिर रूठ गयी, और ना जाने क्या ही हुआ
नज़र लग गयी दुनिया की, वापस लौटी मेरी हर दुआ

मैं टूटा था जोड़ा उसने,
जो जुड़ा तो फिर तोड़ा उसने
यूँ तो कसकर मुझे पकड़ा था
फिर बीच राह छोड़ा उसने

अब कहाँ जाऊँ, किस देव को पूजूँ
लाख सवालों के उत्तर,
मेरी जान बता किस से पूछूँ

क्या एक और प्रहार
कलेजे पर रख कर के जीना है
क्या सच्चे प्रेम का विष मुझको
फिर अमृत समझ कर पीना है

मैं ही क्यों, हाँ मैं ही क्यों,
क्या प्रेम में मेरे कमी रह गयी
जो हटने लगी थी धुंध
क्यों फिर से आंखों के आगे जमी रह गयी

हर बार क्यों मेरी सच्ची मोहब्बत को ठुकराया जाता है
क्यों आंखों के आगे ही अपनापन झुठलाया जाता है

दिल-ओ-जान से चाहना उसको, क्या मेरी ही गलती थी
उसको हंसाना,प्यार जताना, क्या ये भी कोई गलती थी

हां वो एक परी थी जो सपनो में आकर मिलती थी
हां वो थी एक गुलाब जो मेरे गुलशन में खिलती थी
© Inkster

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