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चार आंखों से पढ़ना
जब भी पढ़ना
चार आँखों से पढ़ना
न कोई तुम बात अपने मन से गढ़ना
चार आँखों से ही तो पढ़ने थी बैठी
फिर भी पढ़ न पाई
दो बातें अपने मन से गढ़ न पाई
रीत की प्रीत के आगे
किसी की एक न चली
प्राण जाए पर वचन न जाए
हे प्रभुराम देखी हमने भी तेरी प्रभुताई
तेरे नाम के बिना ये दुनिया रास न आई
अब तू ही बता कहाँ है तेरी प्रभुताई
धर्म के नाम पर तेरे नाम के चर्चे
व पर्चे छप रहे
एक दूजे से लोग बात करते दिख रहे
चुनाव का माहौल है गर्म
हर कोई सेंक रहा रोटियाँ नरम नरम
किचड़ एक दूजे पे लोग उछाल रहे
माता बहनों को भी बीच में ला रहे
धर्म की ओट में लग रही चोट है
न जाने किसको जाएगा ये वोट है
एक दूजे से लोग पूछ रहे
विरुद्ध पार्टी का देख
आपस में रंजिश साध रहे
कैसा ये माहौल है
आदमी का इंसानियत से न कोई बोल है
पुण्य पाप की गठरी बाँधे बाँधे लोग फिर रहे
जगह जगह हिंसा होते दिख रहे
नाम एक दूजे पे नाम देते दिख रहे
अच्छी राजनीति ये चल रहे
धर्म अधर्म की चिन्ता भी ये न कर रहे
कैसी ये राजनीति चल रहे
देश की अमन शान्ति भँग कर रहे
आम जनता मुफ़्त खोरी में फंस रही
बड़े बड़े सपने हक़ीक़त में बदलेंगे
कैसे कैसे बड़े बड़े ख्वाब देख रही
फैली बेरोजगारी के बीच
रोज़गार के सपने देख रही
भावी नेताओं के वादों के बीच
खुद का भविष्य सुरक्षित देख रही
हे प्रभु कैसा ये माहौल है
इस चक्कर में अच्छे बुरे की पहचान नहीं
आदमी को आदमी की पहचान नहीं
मत अपना तुम गुप्त रखो
कोई बोले हमने इसको दिया
तो तुम भी बोलो हमने भी उसी को दिया
जीते जब कोई तब कह दो
भाई हमने भी तो इसी को दिया
इनके जैसा कोई और नहीं
देश में अमन शान्ति बनाए रखने का
इससे बड़ा कोई और उपाय नहीं
© Manju Pandey Choubey
चार आँखों से पढ़ना
न कोई तुम बात अपने मन से गढ़ना
चार आँखों से ही तो पढ़ने थी बैठी
फिर भी पढ़ न पाई
दो बातें अपने मन से गढ़ न पाई
रीत की प्रीत के आगे
किसी की एक न चली
प्राण जाए पर वचन न जाए
हे प्रभुराम देखी हमने भी तेरी प्रभुताई
तेरे नाम के बिना ये दुनिया रास न आई
अब तू ही बता कहाँ है तेरी प्रभुताई
धर्म के नाम पर तेरे नाम के चर्चे
व पर्चे छप रहे
एक दूजे से लोग बात करते दिख रहे
चुनाव का माहौल है गर्म
हर कोई सेंक रहा रोटियाँ नरम नरम
किचड़ एक दूजे पे लोग उछाल रहे
माता बहनों को भी बीच में ला रहे
धर्म की ओट में लग रही चोट है
न जाने किसको जाएगा ये वोट है
एक दूजे से लोग पूछ रहे
विरुद्ध पार्टी का देख
आपस में रंजिश साध रहे
कैसा ये माहौल है
आदमी का इंसानियत से न कोई बोल है
पुण्य पाप की गठरी बाँधे बाँधे लोग फिर रहे
जगह जगह हिंसा होते दिख रहे
नाम एक दूजे पे नाम देते दिख रहे
अच्छी राजनीति ये चल रहे
धर्म अधर्म की चिन्ता भी ये न कर रहे
कैसी ये राजनीति चल रहे
देश की अमन शान्ति भँग कर रहे
आम जनता मुफ़्त खोरी में फंस रही
बड़े बड़े सपने हक़ीक़त में बदलेंगे
कैसे कैसे बड़े बड़े ख्वाब देख रही
फैली बेरोजगारी के बीच
रोज़गार के सपने देख रही
भावी नेताओं के वादों के बीच
खुद का भविष्य सुरक्षित देख रही
हे प्रभु कैसा ये माहौल है
इस चक्कर में अच्छे बुरे की पहचान नहीं
आदमी को आदमी की पहचान नहीं
मत अपना तुम गुप्त रखो
कोई बोले हमने इसको दिया
तो तुम भी बोलो हमने भी उसी को दिया
जीते जब कोई तब कह दो
भाई हमने भी तो इसी को दिया
इनके जैसा कोई और नहीं
देश में अमन शान्ति बनाए रखने का
इससे बड़ा कोई और उपाय नहीं
© Manju Pandey Choubey
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