...

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कैसे पता चले?
गुल-ए-गुलज़ार को क्या मालूम मोहब्बत क्या है?
कहानी भँवरे की सुनो तो पता चले।

दास्तान-ए-दर्द लफ़्ज़ों से जाहिर होता नहीं कभी,
खामोशी आंखों की सुनो तो पता चले।

किन अंधेरों में, कहाँ खोए हैं हम, किसे पता?
कहीं कोई दिया जले तो पता चले।

कितने छाले, कांटे, शीशे पैरों में लगे हैं, किसे पता?
कोई दो कदम साथ चले तो पता चले।
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