...

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ख़्याल उसका दिली तमन्ना मेरी
यूं ही टकरा ग‌ए थें उससे
किसी महफ़िल में

उसका आना -जाना था उस महफ़िल में
मानों जैसे वो उसका घर हों

शामिल किया उसने मुझे अपनी महफ़िल में
और खुद लौट गया

नजरें उसने कुछ इस क़दर फेरी
मानों जैसे कभी देखा ही नहीं
और मेरी नज़र उससे हटीं हीं नहीं

सबकी नज़र अटकीं थी मुझ पर
और वो मेरी नज़रों बस चुका था

इंतज़ार हुआ करता था उसका उसी महफ़िल में
सबसे गुफ्तगू और मेरी हिस्से खामोशी रखता था

चुपके देखा करता था वो मुझे
देखा मैंने और वो मुस्कुरा कर पलट गया

चाह रखीं मैंने उससे रूबरू होने की
मानों जैसे वो उसकी दिली तमन्ना थी

मैंने दिल में रखा उसे उसकी दस्तक हुई थी जिस दिन दिल पर
बड़ा लम्बा गुज़रा इंतज़ार में

चंद लम्हात गुफ्तगू के उसके संग
और मैंने अपनी नजरें फेर लीं

जातें हुए उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोला
मैं अपना दिल खो चुका हूं
तुम अपना ख़्याल रखना वरना मैं अपनी
सांसों को भी गंवा दुंगा

❤️✨


© पलक शर्मा

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