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जाने दो.....
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो छला गया
अपने को सबसे ऊपर रख
अपनों के सपने जला गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
जो रक्त के रिस्ते, भुला गया
जो, अपने मन के सुख के लिये
निज तात-मात को, रुला गया।
निर्जन वन में, वह व्यर्थ गया
क्या प्राप्य हेतु, किस अर्थ गया
प्रभु को, जग भर खोजा "भूषण"
जिन मन खोजा, वो समर्थ भया।।
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो छला गया
अपने को सबसे ऊपर रख
अपनों के सपने जला गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
जो रक्त के रिस्ते, भुला गया
जो, अपने मन के सुख के लिये
निज तात-मात को, रुला गया।
निर्जन वन में, वह व्यर्थ गया
क्या प्राप्य हेतु, किस अर्थ गया
प्रभु को, जग भर खोजा "भूषण"
जिन मन खोजा, वो समर्थ भया।।
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