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महिला सशक्तिकरण
हालांकि है यह तथ्य सही,
कर सकते इसे अकथ्य नहीं।
स्त्री, पुरुष प्रकृति में भिन्न कहीं,
हैं भिन्न शारीरिक क्षमता भी।
किंतु इसका ये अर्थ नहीं,
हो भेदभाव अधिकार में भी।
जागरूकता के माध्यम से,
संविधान हमारे अनुपम से,
शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक,
मनोवैज्ञानिक तथा राजनीतिक,
समानता हो स्त्री पुरुषों में,
सबको समान अवसर मिले।
आर्थिक तथा राजनीतिक भी,
क्षेत्रों में सभी अग्रसर मिले।
धार्मिक स्थलों पर महिलाओं,
को भी उनका स्थान मिले।
फिल्म उद्योग में स्त्रियों को भी,
पुरुषों समान भुगतान मिले।
मध्यकालीन इतिहास की भांति,
न भोग- वस्तु समझी जाए।
स्त्री होने के कारण न किसी,
अधिकार से वंचित की जाए।
वैधानिक अधिकार तो काफी हैं,
सामाजिक हक अभी बाकी है।
जब मिला है अवसर स्त्रियों ने भी,
कहीं अधिक ऊंचाई नापी है।
पर पुरुषों के अधिकार की भी,
करनी नहीं अवहेलना है।
ना स्त्री को ना ही पुरुषों को,
किसी मनुष्य को नहीं झेलना है।
सब सम -दायित्व के धारक हैं,
नर नारी परस्पर पूरक हैं।
जब बराबर होंगे स्त्री और पुरुष,
न किसी का सम्मान- हरण होगा,
तभी सही मायने में हे मनुज!
महिला सशक्तिकरण होगा।।
© metaphor muse twinkle