...

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जलधर
वृहत- व्योम विचरे जलधर ,
उर- प्रांजल में उमंग भर भर,
जनु बाल- वृंद क्रीड़ा-विनोद,
करने निकले हो सांझ- प्रहर।
विविध- विविध विस्तार, आकार,
प्रति उर में विविध मनोवृत्ति- लहर,
प्रति उर की भिन्न हो प्रकृति, हुनर।
सबके अन्तर्मन सदृश मगर,
निर्मल, शीतल, सम जल भीतर।
लगे मधुर मनोहर श्याम वर्ण,
करे भ्रमण बन के निर्भीक निडर,
वृहत- व्योम विचरे जलधर।।
- Twinkle Dubey
© metaphor muse twinkle