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क्यूं
चलो आज ज़माने से एक सवाल करे
बुलन्द अपनी आवाज़ करे
क्यूं लड़कियों के लिए समाज की ऐसी सोच है
क्यूं उनके हर काम में दिखती बस खोट है
पढ़ लिख कर अगर बन गईं housewife
मतलब बर्बाद कर ली अपनी life
करती है अगर कहीं job
मतलब जमाती होगी पति पर खूब रोब
क्यूं उसके फैसले हो सकते
सिर्फ उसके नहीं
जानती है वो भी आखिर
क्या है गलत और क्या सही
फिर उस पर ही हमेशा सवाल क्यों
देने होते बस उसको ही
हर बार बस जवाब क्यों
ऐसा नहीं की उसके कोई अरमान नहीं
फिर क्यूं उसकी अपनी कोई पहचान नहीं
पहले जानी जाएं पिता के नाम से
फिर मिलती पहचान पति के नाम से ही क्यूं
है गृहस्थी जब दोनो की
तो हर गलती की वही ज़िम्मेदार क्यूं
सब का जीवन संवार कर भी
पूरा जीवन कहलाई वो बेकार क्यूं
बेकार क्यूं?
चलो आज ज़माने से एक सवाल करे
बुलन्द ज़रा अपनी आवाज़ करे ।
अंजली
बुलन्द अपनी आवाज़ करे
क्यूं लड़कियों के लिए समाज की ऐसी सोच है
क्यूं उनके हर काम में दिखती बस खोट है
पढ़ लिख कर अगर बन गईं housewife
मतलब बर्बाद कर ली अपनी life
करती है अगर कहीं job
मतलब जमाती होगी पति पर खूब रोब
क्यूं उसके फैसले हो सकते
सिर्फ उसके नहीं
जानती है वो भी आखिर
क्या है गलत और क्या सही
फिर उस पर ही हमेशा सवाल क्यों
देने होते बस उसको ही
हर बार बस जवाब क्यों
ऐसा नहीं की उसके कोई अरमान नहीं
फिर क्यूं उसकी अपनी कोई पहचान नहीं
पहले जानी जाएं पिता के नाम से
फिर मिलती पहचान पति के नाम से ही क्यूं
है गृहस्थी जब दोनो की
तो हर गलती की वही ज़िम्मेदार क्यूं
सब का जीवन संवार कर भी
पूरा जीवन कहलाई वो बेकार क्यूं
बेकार क्यूं?
चलो आज ज़माने से एक सवाल करे
बुलन्द ज़रा अपनी आवाज़ करे ।
अंजली
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