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ऐसा फूल सा आप भी बनें
झेलकर दूसरों की दुष्टता और निर्ममता
जो दिखाता अपनी पूर्ण सहिष्णुता
सबको महकाता जो अपनी सुगंध से
ऐसा फूल सा आप भी बनें।

बाँटता है जो अपनी मुस्कान और कोमलता
तितलियों और भंवरों को देता मधु का दान
सेवा और पुरस्कार की जो ख़ान
ऐसा फूल सा आप भी बनें।

ईर्ष्या, तनाव, द्वेष एवं बैर की भावनाओं को
जो रखता है अपने से कोसों दूर सदा
मन में रखता दूसरों के के लिए सद्भावना
ऐसा फूल सी आप भी बनें।

कुछ पाने की इच्छा और भावना से है जो ऊपर
देना और त्याग भावना ही है जिसमें अशेष
यही जिसके जीवन का मूल मंत्र और संदेश
ऐसा फूल सा आप भी बनें।

हवा हो, धूप हो या बरसात
हर मौसम और हर हालत में
जो बेफिक्री से है डोलता और लहराता
ऐसा फूल सा आप भी बनें

सादगी, सुंदरता, सच्चाई का पाठ
जो रहता है प्रेम और दया से सराबोर
जो दूसरों की खुशियों से होता हो भाव विभोर
ऐसा फूल सा आप भी बनें।
© राकेश कुमार सिंह