...

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क्षणिका
चक्षु खोलूं तो
तुम ओझल हो जाते ,
चक्षु बंध करूं तो
तुम प्रगट हो जाते
ये कैसा स्वप्निल दृश्य ?
हृदय से विपरित
रक्त से शिथिल
एहसास से बढ़कर ,
क्षणभर श्वास में मिलें..!!

© -© Shekhar Kharadi
तिथि- १७/५/२०२२, मई

क्षणिका हिंदी साहित्य की मूल्यवान विधा है । क्षणिका किसी क्षण विशेष तीव्र अनुभूति को गहन अभिव्यक्ति देने वाली छोटी काव्य या लघुकाव्य विधा है । जो कम शब्दों में भी विस्तृत भावार्थ प्रस्तुति करने की उत्कृष्ट कला को क्षणिका कहते हैं । वैसे हिंदी शब्द कोश में क्षणिका केवल एक ही अर्थ मिलता है, बिजली, मेघ-द्युति क्षण भर के लिए चमकती है अतः क्षणिका मेघ-विद्युत है, जाहिर है क्षणिका शब्द क्षण से बनता है ।