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कुदरत से मोहब्बत
खुद के स्वार्थ से ऊपर उठकर के देखो,
कुदरत से मोहब्बत निभा कर के देखो।
तेरा भोगवाद किया है कितना नुक़सान,
दो जने के खातिर लम्बे चौड़े ऊंचे मक़ान।
जंगल साफ़ हो गए बने तेरा साज सामान ,
मन में चैन नहीं दिखाते रहते झुठी शान।
तेरे दूध मलाई कृमि में मर रहे अरबों बेजुबान,
उनके खाल से तन ढंकते स्वाद को ही देते मान ।
धर्म के नाम किए उद्दंड पाले बस अंहकार
अंत समय लगा खाली हाथ कहा सब बेकार।
कथनी करनी में तेरी न हो अंतर मेरी जान
खुद से शुरूवात हो करना खुशियों का कुर्बान।
© Sunita barnwal
कुदरत से मोहब्बत निभा कर के देखो।
तेरा भोगवाद किया है कितना नुक़सान,
दो जने के खातिर लम्बे चौड़े ऊंचे मक़ान।
जंगल साफ़ हो गए बने तेरा साज सामान ,
मन में चैन नहीं दिखाते रहते झुठी शान।
तेरे दूध मलाई कृमि में मर रहे अरबों बेजुबान,
उनके खाल से तन ढंकते स्वाद को ही देते मान ।
धर्म के नाम किए उद्दंड पाले बस अंहकार
अंत समय लगा खाली हाथ कहा सब बेकार।
कथनी करनी में तेरी न हो अंतर मेरी जान
खुद से शुरूवात हो करना खुशियों का कुर्बान।
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